Book Title: Vyavahar Sutram Part 05
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री
व्यवहार
सूत्रम्
नवम उद्देशकः १४६४ (A)
जइ समणाण न कप्पति, एवं एगाणिया जिणवरिंदा । गणहरमादी समणा, अकप्पिए नेव चिटुंति ॥ ३७४९ ॥ तस्यां प्राभृतिकायां श्रमणानामवस्थातुं कल्पते भगवतः प्रवचनातीतत्वात्। अन्यच्च यदि श्रमणानां न कल्पते तत एकाकिनो जिनवरेन्द्रा भवेयुः,यतो गणधरारदयः श्रमणा अकल्पिके नैव तिष्ठन्ति, न चैतदस्ति ॥ ३७४९ ॥
तम्हा कप्पइ ठाउं, जह सिद्धायणम्मि होइ अविरुद्धं । जम्हा उ न साहम्मी, सत्था अहं ततो कप्पे ॥ ३७५० ॥ तस्मात् कल्पते स्थातुम्, यथा सिद्धायतने भवत्यवस्थानमविरुद्धं तथाऽत्रापीति भावः। यस्मात् शास्ता तीर्थकरोऽस्माकं न साधर्मिकः, प्रवचनातीतत्वात् ततः कल्पते ॥ ३७५०॥
एतदेवाह
सूत्र ३७-९
गाथा ३७४९-३७५५ भिक्षुप्रतिमा
विधिः
|१४६४ (A)
१. न वि य -पु.प्रे. ॥
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