Book Title: Vyavahar Sutram Part 05
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 294
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहारसूत्रम् नवम उद्देशकः १४७४ (A) भवति वा न वा ॥ ३७७७ ॥ पडिणीयऽणुकंपा वा, मोयं वटुंति गुज्झगा केइ । बीयादिजुतं जं वा, विवरीयं उज्झए सव्वं ॥ ३७७८ ॥ प्रत्यनीका अनुकम्पन्ते इत्यनुकम्पा वा केचिद् गुह्यकाः मोकं कायिकी वर्द्धयन्ति, यद्वा बीजादियुतं कुर्वन्ति । सर्वमेतत् स्वाभाविकं न भवति, किन्तु विपरीतम्, अतस्त्यजति ॥३७७८॥ सम्प्रति द्रव्यादितो मार्गणामाहदव्वे खेत्ते काले, भावम्मि य होइ सा चउविगप्पा । दव्वे उ होइ मोयं, खेत्ते गामाइयाण बहिं ॥ ३७७९ ॥ काले दिवा व रातो, भावे साभावियं व इयरं वा । सिद्धाए पडिमाए कम्मविमुक्को हवइ सिद्धो ॥ ३७८०॥ गाथा ३७७८-३७८४ मोकाप्रतिमायां भोजनादिविधिः ४१४७४ (A) For Private and Personal Use Only

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