Book Title: Vyavahar Sutram Part 05
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री
व्यवहारसूत्रम् नवम उद्देशकः १४६५ (A)
बंधित्ता कासवतो, वयणं अट्ठपुडसुद्धपोत्तीए । पत्थिवमुवासते खलु, वित्तिनिमित्तं भया चेव॥ ३७५३ ॥
काश्यपः, कौटुम्बिको वृत्तिनिमित्तं भयाद्वा पार्थिवमुपास्ते खलु अष्टपुटया शुद्धया पोतिकया वदनं मुखं बद्ध्वा । एवमत्रापि पार्थिवस्थानीयायास्तीर्थकरप्रतिमाया भक्तिनिमित्तं । नाऽऽयतनं साधवः प्रविशन्ति ॥ ३७५३ ॥
को दोषः? इत्यत आहदुब्भिगंधपरिस्सावी, तणुरप्पेस ण्हाणिया । दुहा वाउवहो चेव, तेण ठंति न चेतिए ॥ ३७५४ ॥ तिन्नि वा कड्डए जाव, थुतीतो तिसिलोइया।
ताव तत्थ अणुण्णायं, कारणम्मि परेण वि ॥ ३७५५॥ १. तणुपस्सेयण्हा ला. ॥
सूत्र ३७-९
गाथा ३७४९-३७५५ भिक्षुप्रतिमा
विधि:
|१४६५ (A)
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315