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हमनवाणीसंग्रह है।हो॥१४॥ जिस काल कथंचित अस्ति कही, तिस काल कथंचितताही है। उभयातमरूप कथंचित सो, निरवाच । कथंचित नाही है। पुनि अस्तिअवाच्य कथंचित त्यों, वह नास्तिअवाच्य कथाही है। उभयातमरूप अकथ्य । । कथंचित, एक ही काल सुमाही है । हो० ॥१४॥ यह सात
सुभंग सुभावमयी, सब वस्तु अभंग सुसाधा है। परवादि। । विजय करिवे कहँ श्रीगुरु, स्यादहिवाद अराधा है। सर
वज्ञप्रतच्छ परोच्छ यही, इतनो इत भेद अबाधा है। 'वृन्दावन' सेवत स्यादहिवाद, कटै जिसतै भववाधा है। हो करुणासागर देव तुमी, निर्दोष तुमारा वाचा है। तुमरे । वाचामें हे स्वामी, मेरा मन सांचा राचा है ॥ १५॥
३९.-संकटमोचन विनती शैर-हो दीनबंधु श्रीपति करुणानिधानजी । यह मेरी विथा क्यों न हो बार क्या लागी।।टेका। मालिक हो दो जहांनके जिनराज आपही। ऐवो हुनर हमारा कुछ तुमसे छिपा
नहीं । जानमें गुनाह मुझसे बन गया सही। ककरीके * चोरको कटार मारिये नहीं । हो० ॥१॥ दुखदर्द दिलका । * आपसे जिसने कहा सही। मुश्किल कहर वहरसे लिया है। । भुजा गही । जस वेद और पुरानमें प्रमान है यही । आनंद-1 * कंद श्रीजिनंद देव है तुही । हो० ॥२॥ हाथीपै चढ़ी।
जाती थी सुलोचना सती । गंगामें ग्राहने गही गजराजकी।
गती। उस वक्तमें पुकार किया था तुम्हें सती । भय टारके। *HEREKKERS12424