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वृहज्जैनवाणीसंग्रह -
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जैवंत ||२|| तिस बाद वर्ष दोय शतक बीसके माहीं । मुनि
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पांच ग्यारै अंगके पाठी हुये ह्यांहीं ॥ तिसवाद वरष एकसौ अठारमें जानी । मुनि चार हुये एक आचारांग के ज्ञानी || जैवंत ||३२|| तिस बाद हुये हैं जु सुगुरु पूर्वके धारक । करुणानिधान भक्तको भवसिंधु उधारक ॥ करकंजते गुरु मेरे ऊपर छांह कीजिये । दुखद्वंदको निकंद के आनन्द दीजिये || जैवंत ० ||४|| जिनवीर के पीछेसों, वरष छहसौ तिरासी । तब तक रहे इक अंगके गुरुदेव अभ्यासी ॥ तिस बाद कोई फिर न हुये अंगके धारी । पर होतेभये महा सुविद्वान उदारी ॥ जैवंत ० ||५|| जिनसों रहा इस कालमें जिन ' धर्मका शाका । रोपा है सात भंगका अभंग पताका || गुरुदेव नयंधरको आदि दे बडे नामी | निरग्रंथ जैनपर्थके गुरुदेव जो स्वामी || जैवंत• ॥ ६ ॥ भाषों कहां लों नाम बडी बार लगेगा। परनाम करों जिससे बेडा पार लगेगा | जिसमेंसे कछुइक नाम सूत्रकारके कहीं। जिन नामके प्रभावसे परभावको दहों ॥ जैवंत० ॥७॥ तत्त्वार्थसूत्र नामि उमास्वामी किया है। गुरु देवने संक्षेपसे क्या काम किया है । जिसमें अपार अर्थने, विश्राम किया है। बुधवृद जिसे ओरसे परनाम किया है जैवंत ० ||८|| वह सूत्र है इस कालमें जिनपंथकी पूजी । सम्यक्त्व ज्ञानभाव है जिस सूत्रकी कुंजी || लडते हैं उसी सूत्रसों परवादके मूंजी । फिर हारके हट जाते हैं इक पक्षके लूंजी || जैवंत ० ||९|| स्वामी समंतभद्र महाभाष्य रचा है।
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