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वृहज्जैनवाणीसंग्रह १ A............. .... ... ... ... ....... ...... .. * अतुल अनंत चतुष्टयवंत ॥ जय जय आश-भरन बडमाग।
तपलछमीके सुभग सुहाग ।। ४ ॥ जय जय धर्मध्वजाधर धीर । स्वर्ग-मोक्षदाता वर वीर · जय रत्नत्रय रतनकरंड । जय जिन तारन-तरन तरंड ॥५॥ जय जय समवसरन-1 श्रृंगार। जय संशयवन-दहन तुषार ॥ जय जय निर्विकार निर्दोष । जय अनंतगुणमाणिककोष ॥६॥ जय जय । ब्रह्मचर्यदलसाज । कामसुभटविजयी भटराज ॥ जय जय
मोहमहातरु करी। जय जय मदकुंजर केहरी॥७॥क्रोधमहानत। मेघ प्रचंड । मानमहीधर दामिनिदंड ॥ मायावेलि धनंजय ।। * दाह । लोभसलिलशोषण-दिननाह ॥ ८॥ तुम गुणसागर * अगम अपार । ज्ञान-जहाज न पहुंचै पार ॥ तट ही तटपर
डोले सोय । कारज सिद्ध तहां नाहि हेाय, तुम्हरी कीर्ति वेल बहु बड़ी । यत्न विना जगमंडप चढी ॥ और कुदेव सुयश निज चहैं । प्रभु अपने थल ही यश लहैं ॥१०॥ जगत । * जीव घूमै विन ज्ञान । कीनौ मोहमहाविषपान ॥ तुम सेवा विषनाशक जरी । यह मुनिजन मिलि निश्चय करी ॥११॥ जन्मलता मिथ्यामत मूल। जनम मरण लागै तहँ फूल। सो कवहूं विन भक्ति कुठार । कटै नहीं दुखफलदातार ॥१२॥ । कल्पतरूवर चित्रावेलि । कामपोरखा नवनिधि मेलि ॥ चिंता मणि पारस पाषान । पुण्य पदारथ और महान॥१३॥ये सब एक जन्म संजोग । किंचित सुखदातार नियोग ॥ त्रिभुवन नाथ तुम्हारी सेव । जन्म जन्म सुखदायक देव ।। तुम जग-1 *- *-*- *-
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