Book Title: Vruhhajain Vani Sangraha
Author(s): Ajitvirya Shastri
Publisher: Sharda Pustakalaya Calcutta
View full book text
________________
*
-
-
-
वृहज्जैनवाणीसंग्रह
५०३ ।
wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
(२८१) १ मै बंदा स्वामी तेरा ।। मैं टेका। भवभंजन आदि नि
रंजन, दूर दुःख मेरा ॥ मैं ॥१॥नाभिराय नंदन जगवंदन, 2 मै चरननका चेरा ॥ मै० ॥२॥ यानत ऊपर करुना कीजे, 1 दीजे शिवपुर डेरा ॥ मै ॥३॥
(२८२) * स्वामी श्रीजिन नाभिकुमार ! हमको क्यों न उतारो पार ॥ स्वामी ॥टेका। मंगल मूरत है अविकार, नाम भनें । भज विघन अपार । स्वामी ॥१॥ भवभयभंजन महिमा
सार, तीनलोक जिय तारनहार ॥ स्वामी ॥२॥ धानत। * आए शरन तुम्हार, तुमको है सब शरम हमार । स्वामी ॥
(२८३ ) नेमजी तो केवलज्ञानी, ताहीकों मैं ध्याऊं ॥नेमिजी । ॥टेका। अमल अखंडित चेतन मंडित, परम पदारथ पाऊं ॥ । नेमिजी० ॥१॥ अचल अबाधित निज गुण छाजत, वचनन !
कैसे बताऊं । नेमिजी ॥२॥ धानत ध्याइए शिवपुर जा। इए, बहुरि न जगमें आऊं ॥ नेमिजी० ॥ ३ ॥
(२८४) हम आए हैं जिनभूप: तेरे दरशनको ॥ हम० ॥टेक॥ । निकसे घर आरतिकूप तुम पद-परशनको ॥ हम. ॥१॥ ॐ बैननिसों सुगुन निरूप, चाहैं दर्शनको ॥ हम० ॥२॥ धानत । ध्यावें मन रूप, आनंद बरसनको ॥ हम० ॥३॥
*
R
-SANSKE-
KAR+
RK*

Page Navigation
1 ... 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410