Book Title: Vruhhajain Vani Sangraha
Author(s): Ajitvirya Shastri
Publisher: Sharda Pustakalaya Calcutta

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Page 410
________________ wwwwwwwwwwwwww. vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv बृहज्जैनवाणीसंग्रह 53 ! करी चाही छिन पवनपूत पाथरपर गिरियां // 2 // अग्नि-1 * कुंड महिं सिय जब पैठी फूले कमल तहां जल भरियां // 3 // तुम शरणा बिन भवबन भटको नंतानंत जनम घर भरियां / यौंही सेवकपर किरपा कर मेंट देहु भव भवहिं मैंवरियां // (36) , श्रीजी तौ आज देखो भाई, जाकी सुन्दरताई // श्री जी० ॥टेर॥ कंचन मणिमय अंगतन राजै, पद्मासन छवि * अधिकाई ॥श्रीजी० // तीन छत्र शिर ऊपर जिनके, चौसठि चमर ढुरै भाई // श्रीजी० // 2 // वृक्ष अशोक शोक सब नाशै, भामंडल छवि अधिकाई ॥श्रीजी॥३॥ धुनि जिनवर की अतिशय गाजै, सुरनर पशुके मन भाई ॥श्रीजी० // 4 // * पुष्पवृष्टि सुर दुन्दुमि बाजै, देख 'जिनेश्वर रुचि आई॥श्री. ( 380 ) * सुनिये सुपारस अरज हमारी // सुनिये // टेर। लख 1 चौरासी जोन फिन्यौ मैं, पायो दुख अधिकारी / सुनिये॥ वडे पुण्यतै नर-भव पायो. शरन गही अब थारी सुनिये०॥ रत्नत्रय निधि निजकी दीजै, कीजे विधि निरवारी। / सुनिये // 3 // अधम उधारक देव जिनेश्वर, आज हमारी वारी / सुनिये // 4 // (381) - बड़ी दो घड़ी मंदिरजीमें जाया करो, 2 एजी जाया / करो, जी मन लगाया करो, घडी. टेरसब दिन घर धंधामें खोया, कछु तो धर्ममें विताया करो। घड़ी० // 1 //

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