Book Title: Vruhhajain Vani Sangraha
Author(s): Ajitvirya Shastri
Publisher: Sharda Pustakalaya Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 398
________________ *-- - - -- बृहज्जैनवाणीसंग्रह ५१७ ३२६-देशी दादरा। * अरी तुम कौनकी हो प्यारी, फुलवा बीननहारी ॥ टेक ॥ ज्ञान ध्यानको वन्यों बगीचा, फूल रही फुलवारी। 1 जादोराय माली वन आये, काटत कर्म कुठारी ॥१॥ । समुद्रविजयजी मेरे ससुर लगत हैं, उग्रसेन घिय प्यारी। नेमनाथ मेरे पति कहीजे, हम हैं राजुल नारी ||२|| । इत झूनागढ़ इते द्वारिका, वीच शिखर गिरनारी। गिरवरलाल कहे करजोडी, चरण शरण बलहारी ॥३॥ ३२८-झूलनो दादरा।। । झूलत सव जिनराय हिंडोला, झूलत सब जिनराय० ॥टेक॥ * ज्ञान दरश दोऊ खंभ लगे हैं, डडा ध्यान सुखदाय ॥१॥ दान शील तप भावना डोरी, पाटी समझ सुभाय ॥२॥ शील सुंदरी संग हिलमिल बैठे, आगम धुन गुण गाय ॥३॥ के रमता सुमति पेग देत हैं, पंचमगति पहुंचाय ॥४॥ ५ चेतनता सुध होय जगतमें, आवागमन मिटाय ॥५॥ ३२६-फाग होली। जय बोलो ऋषभजिनेश्वरकी, जय बोलो० ॥ टेक ॥ जन्म अयोध्या माता मरुदेवी, नाभिनंदन जगतेश्वरकी ॥१॥ । धनुष पांचसै काया जिनकी, लक्षण वृषभधरेश्वरकी ॥२॥ लख चौरासी पूरव आयु, कुल इक्ष्वाक करेश्वरकी ॥३॥ * दास चुन्नी प्रभु सेवा चाहे, तारनतरन तारेश्वरकी ॥४॥ ३३०-ठुमरी झंझोटी। काहे गिरनारी गिर छायरे हमारे पिया, काहे गिर टैक। dasias- *

Loading...

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410