Book Title: Vruhhajain Vani Sangraha
Author(s): Ajitvirya Shastri
Publisher: Sharda Pustakalaya Calcutta
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वृहज्जैनवाणीसंग्रह
प्रभु वैरागी वडे अति भारी, दीनी पशू छुडाय रे ॥१॥ शिवरमनी सिद्धनकी नारी, ताही ने लये भरमाय रे ||२|| ना माने राजुल नेम प्रभु चिन, मो चित्त ओर न सुहाय रे ||
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३३१ -- दादरा कहरवा ।
नेमी पिया म्हारी लीन्हा न खबरिया || टेक || व्याहन आये संग हलधर लाये, हर्ष भयोरे आज सारी री नगरिया || १|| तुम्हरे कारन पशु विरवाये, तोरि कंकन लई गिरकी डगरियां || २ || नेमी वन धरि छप्पन केवल पाये, छेदी कहै हमारी छुटी रे भवरिया || ३ ॥ ३०२ ठुमरी दादरा |
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चले हो सैय्यां किसपर छोड अकेली टेक ॥ भोगके जोगकी जोगके प्यारे, जोवन वैस नवेली ॥ १ ॥ तुम जिन सुखद भये सगरे, चंदन चंद नवेली || २ || चंचरीक जिस चंपक त्यों हम, परियन संग सहेली ||३ | पार उतारो वार सार जिम, मनु मझधार दहेली ||४|| राजुल तारो फेद विदारो, मंगत बूझ पहेली ॥ ५ ॥
३३३ - दादरा |
प्यारा मोरा चढ़ा गिरनारी, प्यारा मोरा चढ़ा० ॥ टेक ॥ तीन ज्ञान जमतही पाये, इंद्र करे जिन सेवा चारी ॥ १ ॥ मोर मुकुट कंकन तोरे, पशुवनपै प्रभु करुणाधारी ॥ २ परसादी कहै बिनवें राजुल, देउ दिक्षा हम जांचनहारी ||३|| ३३४ - दादरा थियेटर |
अम्मा मुझे चल करके दिक्षा दिला दे, दिक्षा दिला दे

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