Book Title: Vruhhajain Vani Sangraha
Author(s): Ajitvirya Shastri
Publisher: Sharda Pustakalaya Calcutta

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Page 401
________________ 多多夺本起不 स+++ 泰安泰 वृहज्जैनवाणीसंग्रह ५२४ समझै आपनेको दर्श करके आपके । भारी नींद से तूने जगा यां हम्हें || शांतिसागर ॥३॥ चारित्र तेरा विमल है आदर्य है सुमनोज्ञ है । है तृप्तिकर अरु असरकारक सब तरहसे योग्य है। धरते चरणों में शीश उबारो हम्हे || शांतीसागर ० | ४ || बहुत दिनकी आश पूरी जन्म मम सार्थक हुआ । देखा स्वरूप अनूप तेरा 'कुंज' दिल प्रमुदित हुआ । अपने चरणोंका दास बनालो हम्हे || शांतिसागर || ५ || ३५२ - महावीर तुझे वीर स्वामी मैं आदि मनाऊं । हरो विघ्नवाधा मैं शीश झुकाऊं ||टेक || तेरी वीर शिक्षा बनाती सुकर्मी । उसी सीखसे आज भवको नशाऊं || तुझे ० ॥ १ ॥ गया जीव कोई शरण वीर तेरी । उवारा उसे याते शीस नवाऊं || तुझे ||२|| दया धर्म हे नाथ! तुमने बताया । उसी धर्मका आज डका बजाऊं || तुझे ||३|| दिखाया सुपथ वीर स्वामी तुम्हींने । चलूँ मैं उसी राह करतब निभाऊं || तुझे ० ||४|| कहै 'कुंज' स्वामी हरो दुःख मेरा । धरूं जन्म जब धर्म तेराही पाऊं ॥ तुझे ॥ ३५३ - धर्मप्रशंसा परलोक मांही धर्म चलेगा तेरे साथ रे || टेक ॥ चलेगी नाहीं माता | चलेगा नहीं तात । चलेगा प्यारे धर्म अकेला तेरे साथ रे || परलोक ० ॥ चलेगी नहीं औरत । चलेगी नहीं दौलत | चलेगी चेतन सुमति तुम्हारे इक साथ रे || परलोक ० ॥ चलेगा दीया दान | चलेगा पर कल्याण | नहीं चालें प्यारे 1

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