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वृहज्जैनवाणीसंग्रह
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समझै आपनेको दर्श करके आपके । भारी नींद से तूने जगा
यां हम्हें || शांतिसागर ॥३॥ चारित्र तेरा विमल है आदर्य
है सुमनोज्ञ है । है तृप्तिकर अरु असरकारक सब तरहसे योग्य है। धरते चरणों में शीश उबारो हम्हे || शांतीसागर ० | ४ || बहुत दिनकी आश पूरी जन्म मम सार्थक हुआ । देखा स्वरूप अनूप तेरा 'कुंज' दिल प्रमुदित हुआ । अपने
चरणोंका दास बनालो हम्हे || शांतिसागर || ५ ||
३५२ - महावीर
तुझे वीर स्वामी मैं आदि मनाऊं । हरो विघ्नवाधा मैं शीश झुकाऊं ||टेक || तेरी वीर शिक्षा बनाती सुकर्मी । उसी सीखसे आज भवको नशाऊं || तुझे ० ॥ १ ॥ गया जीव कोई
शरण वीर तेरी । उवारा उसे याते शीस नवाऊं || तुझे ||२|| दया धर्म हे नाथ! तुमने बताया । उसी धर्मका आज डका बजाऊं || तुझे ||३|| दिखाया सुपथ वीर स्वामी तुम्हींने । चलूँ मैं उसी राह करतब निभाऊं || तुझे ० ||४|| कहै 'कुंज' स्वामी हरो दुःख मेरा । धरूं जन्म जब धर्म तेराही पाऊं ॥ तुझे ॥ ३५३ - धर्मप्रशंसा परलोक मांही धर्म चलेगा तेरे साथ रे || टेक ॥ चलेगी नाहीं माता | चलेगा नहीं तात । चलेगा प्यारे धर्म अकेला तेरे साथ रे || परलोक ० ॥ चलेगी नहीं औरत । चलेगी नहीं दौलत | चलेगी चेतन सुमति तुम्हारे इक साथ रे || परलोक ० ॥ चलेगा दीया दान | चलेगा पर कल्याण | नहीं चालें प्यारे
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