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वृहज्जैनवाणीसंग्रह ५२३
(३५६) । थारो भरोसो भारीमुझे जिन ॥टेका। भवसागरमें डूबत प्रभुजी लीन्ही शरण तुम्हारी ॥१॥ तुम प्रभु दीनदयाल दयानिधि, मै दुखिया संसारी २।। तुम जग जीव अनंत उबारे अबकी बार हमारी ॥३॥ नैनसुख प्रभु हमारी नैया अटक रही मझधारी ॥४॥ . . . . . .
प्रभूकी भक्ति काफी है, शिवा सुन्दर मिलानेको टेक। छुड़ादामन कुमतसे जो, तू शिव सुन्दरको चाहै है । तुझे * आई है रे चेतन, सखी सुमता बुलानेको ।प्रभू०१॥ जगा
मत मोह राजाको,पड़ा है ख्वाब गफलतमें । बना ले ध्यान-1 की नौका, भवोदधि पार जानेको ।। प्रभू० ॥२॥ तुझे अय 'न्यामत' कोई, अगर रहबर नहीं मिलता ॥ तो ले चल सग। । जिनवानी, तुझे रस्ता बतानेको ।। प्रभु० ॥३॥
____ ३५१-शांतिसागर आचायस्तुति। 4 शांतीसागर आचारज नमोस्तु तुम्हे ॥ टेक ॥ संघका । नेतापना शोभै विविधि विधि आपको। दे शुशिक्षा विज्ञ कीना नाथ तूने संघको। दीनी शिक्षा यहां भी सुधारा हम्हे ।। शांतिसागर ॥ शांतिता लखि आपकी आनंद जो दिलमें हुआ । प्रमुदित हृदय-अम्बुज हुआ रविरूप तू परगट हुआ। तेरी सुंदर सुमुर्ति सुहावे हम्हें ॥ शांतीसागर.
॥१॥ सर्व जनता शिर झुकावै चरण पसकर आपके | धन्य । * - ---- -
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