Book Title: Vruhhajain Vani Sangraha
Author(s): Ajitvirya Shastri
Publisher: Sharda Pustakalaya Calcutta

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Page 395
________________ *- - ---25- annNAMANNAR बृहज्जैनवाणीसंग्रह लाये गजराजै ॥ बधाई० ॥ जन्मसदन सची ऋषभ ले, * सौंप दिये सुरराजै । गजपै भार,गये सुरगिरिपै, न्हौन करनके । काजै ।। बधाई ॥ सहस आठ शिर कलस जु ढारे, पुनि सिंगार समाजै । लाय धरयो मरुदेवी करमैं, हरि नाच्यो । सुख साजै ।। वधाई । लच्छन व्यंजन सहित सुभग तन, , कंचन दुति रवि लाजै । या छवि बुधजनके उर निशिदिन,तीन । ज्ञानजुत राजै । वधाई ॥४॥ ३१८-राग सोरठा ___ आज तोबधाई हो नाभिद्वार । आज ॥ टेक ॥ मरुदेवी । माताके उरमें, जनमे रिषभ कुमार ॥ आज ॥ १ ॥ सची। • इंद्र सुर सबमिलि आये, नाचत हैं सुखकार । हरषि हरषि पुरके नारनारी, गावत मंगलाचार ।। आज तो ॥२॥ ऐसो * बालक भयो जु ताकै, गुनको नाहीं पार । तनमन वचत वंदत बुधजन, है भवतारनहार ।। आज ॥ __ भये आज अनंदा, जनमे चंदजिनदा ॥ भये ।। टेक ॥ । चतुरनिकाय देवमिलि आये, इंद्र भया है वंदा ।। भए० ॥ महासेन घर मात लछमना, उपजाया सुखकंदा । जाके तनमें बढी जोति अति, मलिन लगे हैं चंदा ।। भये ॥२॥ . अब भविजन मिलि सुख पायेंगे, कटि हैं कर्मके फंदा।। * याहीके उपदेश जगतमें, होगा ज्ञान अमंदा ।। भये ॥३॥ धन्य घरी पनि भाग हमारा, दूर भया दुखदंदा । बुधजन । * वारवार इम भाखै, चिरजीवी यह नंदा ॥ भये ॥ ४ ॥

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