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** *** १४८२ बृहज्जैनवाणीसंग्रह
कही कैलाशके भाव । जिनदर्शनको अधिकहिं चाव ॥ * पूजा करके बैठी वहां। पद्मावति आई सो तहां ॥ २४॥
इतने मध्य देव आइयो। प्रभावतीने प्रश्न जु कियो। हे। । देवी कहिये किस काज । आये देवी देव जु आज ॥२५॥ * पद्मावति बोली वच सार । पुष्पांजलिव्रत है सुअबार ॥ भादों ।
मास शुक्ल पंचमी। पंचदिवस आरंभ न अमी॥२६॥ * घोषध यथाशक्ति व्यवहार। पूजो जिन चौबीसी सार॥
नानाविधिक पुष्प जु लाय। करै एक माला जु बनाय ॥२७॥ तीन काल वह माला देय । बहुत भक्तिसों विनय करेय ॥ जपै जाप शुभ मंत्र विचार । याविधि पंचवर्ष
अवधार॥२८॥ उद्यापन कीजै पुनि सार। चारप्रकार दान । अधिकार । उद्यापनकी शक्ति न होय। तो दूनो व्रत
कीजै लोय ॥२९॥ यह सुन प्रभावतीव्रत लियो । पद्मावती । किरपाकर दियो । स्वर्ग मुक्ति फलका दातार। है यह * पुष्पांजलिव्रत सार ॥३०॥ दोहा-पद्मावति उपदेशसों, लीनो व्रत शुभ सार। ___ पृथ्वी परसु प्रकाशिके, कियो भक्तिचितधार ॥३१॥
तपविद्या श्रुतकीर्तिने, पाई अति जु प्रचंड ।
प्रभावती व्रत खंडने, आई सो बलवंड ॥३२॥ चौपाई-बासर तीन व्यतीते जबै । पद्मावति पुनि आई तवै ।। विद्या सव भागी ततकाल । कियो सन्यासमरण तिस बाल * ॥३३॥ कल्प सोलवें मुख्य सु जान । देव भयो सो पुण्य ।