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--54- -- वृहज्जैनवाणीसंग्रह
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अथ अकारादि प्रथम प्रकरण। अअअ। जो परे तीन अकार। तो जानि सुखविस्तार ।। कल्याणमंगल होय । सम्मान बाढ़े सोय ॥१॥ लक्ष्मी वसै। नित धाम । व्यापारमें बहु दाम ॥ परदेशमें धन लाभ । सं-1 * ग्राममें जय लाभ ॥२॥ नृपद्वारमें सन्मान | संकट कटै प्रमान
सब रोग अरु दुर्भागि । तत्काल जावे भागि ॥३॥ प्रगटै । सकल कल्यान । यामें न संशय जान । यह महा उत्तम अंक !
फेल अटल जासु निशंक ॥४॥ । अअर । दो अकारपर परै रकार । मध्यम फल है सुनो। विचार । जो कारज चिन्तो मनमाहिं सो तौ शीघ्र होनको
नाहि ॥५॥ पूरब पाप उदय है जानि । सोई करत काजकी। १ हानि । तात इष्टदेव आराधि । कुल देवीको पूजि सुसाधि ।।
तासु जजब आराधन किये । किंचित होय काज सुनि हिये।
मध्यम प्रश्न परयो हैं येह । मति मानो यामें सन्देह ॥७॥ * अन्नह । जहं दो अकारके अन्त माहिं । हंकार परै सो।
शुभ कहाहि । धनधान्य समागम लाभ होय । परदेश गयो । जो चहै सोय ॥८॥ तो मनवांछितकी सिद्धि जान । अरु । मित्र बंधुसों प्रीति मान । तत्काल शत्रुको होय नाश । तब
विघ्न मिटै अनयास तास ॥९॥ घरमें प्रगटै मंगलविभूति । । तव पुण्य प्रभाव प्रबल अकूत । यह उत्तम प्रश्न सुनो पुमान।। है यों कहत केवली गुनिनियाम ॥१०॥ * अप्रत । जहं दुइ अकार पर है तकार । तहं शुभ फल