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४४ हज्जैनवाणीसंग्रह है। तुम नीतिनिपुन त्रैलोकपती, तुमही लगि दौर हमारा र है। श्री० ॥४॥ जबसे तुमसे पहिचान भई, तबसें तुमही* को माना है । तुमरे ही शासनका स्वामी, हमको शरना ।
सरधाना है। जिनको तुमरी शरनागत है, तिनसौं जम* राज डराना है । यह सुजस तुम्हारे सांचेका, सब गावत
वेद पुराना है ।। श्री० ॥५॥ जिसने तुमसे दिलदर्द कहा, तिसका तुमने दुख हाना है । अब छोटा मोटा नाशि तुरत, । सुख दिया तिन्हें मनमाना है ॥ पावकसों शीतल नीर किया, १ औ चीर वढा असमाना है । भोजन था जिसके पास नहीं, * सो किया कुवेर समाना है। श्री० ॥६॥ चिंतामन पारस ,
कल्पतरू, सुखदायक ये परधाना है। तब दासनके सब दास यही, हमरे मनमें ठहराना है ॥ तुम भक्तनको सुरइंदपदी, फिर चक्रपतीपद पाना है । क्या बात कहों विस्तार बडी, वे पावै मुक्ति ठिकाना है ॥ श्री० ॥ ७॥ गति चार
चुरासी लाखवि, चिन्मूरत मेरा भटका है । हो दीनबंधु * * करुणानिधान, अवलो न मिटा वह खटका है । जब जोग
मिला शिवसाधनका, तब विघन कर्मने हटका है । तुम
विधन हमारे दर करो सुख देहु निराकुल घटका है ।। श्री N८॥ गजग्राहग्रसित उद्धार लिया, ज्यों अंजन तस्कर तारा। * है। ज्यों सागर गोपदरूप किया, मैनाका संकट टारा है।
ज्यों सूलीते सिंहासन औ, वेडीको काट बिडारा है। त्यौं । । मेरा संकट दूर करो, प्रभु मोकू आस तुम्हारा है ॥ श्री