Book Title: Vivah Kshetra Prakash
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 7
________________ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश । 'जरा जरूर म्लेच्छकन्या थी और म्लेच्छों का वही प्राचार है ओ प्रादिपुराण में वर्णित हुआ है; 'प्रियंगुसुन्दरी' एक व्यभिचारजात की ही पुत्री थी, और रोहिणो के वरमाला डालने के वक्त तक वसुदेव के कुल और उनकी जातिका यहाँ (स्वयंघर में) किसी को कोई पता नहीं था। वे एक अपरिचित तथा बाजा बजाने वाले के रूप में ही उपस्थित थे । साथ ही, चारुदत्स सेठ का बसंतसेना वेश्या को अपनी स्त्री बना लेना भी सत्य है। और इन सब बातों को आगे चलकर खब स्पष्ट किया जायगा। उद्देश्यका अपलाप, अन्यथाकथन और समालोचकके कर्त्तव्यका खून । समालोचना में पुस्तक पर बड़ी बेरहमी के साथ कुन्दी छुरी ही नहीं चलाई गई, बल्कि सत्य का बुरी तरह से गला घोटा गया है, पुस्तक के उद्देश्य पर एक दम पानी फेर दिया है, उसे समालोचना में दिखलाया तक भी नहीं, उसका अपलाप करके अथवा उसको बदल कर अपने ही कल्पित रूपमें उसे पाठकों के सामने रखा गया है और इस तरह पर समालोचक के कर्तव्यों से गिरकर,बड़ी धष्टता के साथ समालोचनो का रंग जमाया गया है ! अथवा यों कहिये कि भाले भाइयों को फंसाने और उन्हें पथभ्रष्ट करने केलिये खासा जाल बिछाया गया है। यह सब देख कर, समालोचक जी की बुद्धि और परिणति पर बड़ी ही दया पाती है। मापने पम्तक लेखक के परिणामों का फोटू खोचने के लिये समालोचनाके पृष्ठ ३६, ४० पर, "जो रूढ़ियोंके इतने भक्त हैं"

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