Book Title: Vivah Kshetra Prakash Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Johrimal Jain Saraf View full book textPage 5
________________ बिवाह-क्षेत्र प्रकाश शास्त्रीय उदाहरण' नामसे एक पुस्तक प्रकाशित की और उसे विना * मल्य वितरण किया है। इस पुस्तक पर जैन अनाथाश्रम देहली के प्रचारक पं० मक्खनलाल जी ने एक समालोचना (!) लिखकर उसे पुस्तक की शकल में प्रकाशित कराया है, और वे उसका जोरों के साथ प्रचार कर रहे हैं। प्रचारक जी को वह समालोचना कितनी निःसार, निर्मल, निहें तुक, बेतुकी और समालोचक के कर्तव्यों से गिरी हुई है, और उसके द्वारा कितना अधिक भ्रम फैलाने तथा सत्य पर पर्दा डालने की जघन्य चेष्टा कीगई है, इन सब बातोंको अच्छी तरहसे बतलाने और मनता को मिथ्या तथा अविचारितरम्य समालोचना से उत्पन्न होने वाले भ्रमसे सरक्षित रखने के लिये ही यह उत्तरलेख लिखा जाता है । इससे विवाह-विषय पर और भी ज्यादा प्रकाश पड़ेगा-वह बहुत कुछ स्पष्ट हो जायगा-और उसे इस उत्तर का प्रानषंगिक फल समझना चाहिये। __ सबसे पहिले, मैं अपने पाठकों से यह निवेदन करदेना चाहताहूंकि जिस समय प्रचारफजीकी उक्तसमालोचना-पुस्तक मुझे पहले पहल देखने को मिली और उसमें समालोच्य पुस्तक की बाबत यह पढ़ा गया कि वह "अत्यन्त मिथ्या, शास्त्र विरुद्ध और महा पुरुषों को केवल झूठा कलंक लगाने वाली" तथा "अस्पृश्य" है और उसमें बिल्कुल झूठ,"मनगढंत," “सर्वथा * यह पुस्तक अब भी विना मूल्य उक्त लाला जौहरीमल जी के पास से मिलती है। ___ + समालोचक जी खद पुस्तक को छूते हैं दूसरों को पढ़ने छुने के लिये देते है, कितनी ही बार श्रीमन्दिर जी में भी उसे ले गये परन्तु फिर भी अस्पृश्य बतलाते हैं ! किमाश्चर्यमतः परं !!Page Navigation
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