Book Title: Vivah Kshetra Prakash
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Johrimal Jain Saraf

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ T प्राथमिक निवेदन मिथ्या और शास्त्र विरुद्ध " कथाएँ लिख कर श्रथवा " सफेद झूट" या "भारी झूट" बोल कर "धोखा " दिया गया है, तो मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही। क्योंकि, मैं अब तक जो कुछ लिखता रहा हूं वह यथाशक्ति और यथासाधन बहुत कुछ जाँच पड़ताल के बाद लिखता रहा हूँ । यद्यपि मेरा यह दावा नहीं है कि मुझसे भूल नहीं हो सकती, भूल ज़रूर हो सकती है और मेरा काई विचार अथवा नतीजा भी ग़लत हो सकता है परन्तु यह मुझसे नहीं हो सकता कि मैं जानबूझकर कोई ग़लत उल्लेख करू अथवा किसी बात के असली रूपको छिपाकर उसे नकली या बनावटी शकल में पाठकों के सामने उपस्थित करूँ । अपने लेखों की ऐसी प्रकृति और परिणति का मुझे सदा ही गर्व रहता है। मैं सत्य बातको कभी छिपाना नहीं चाहता - - अवसर मिलने पर उसे बड़ी निर्भयता के साथ प्रगट कर देता हूं - और सत्य उल्लेखका सख्त विरोधी हूँ । ऐसी हालत में उक्त समालोचना को पढ़कर मेरा श्राश्चर्य चकित होना स्वाभाविक था । मुझे यह ख़याल पैदा हुआ कि कहीं अनजान में तेरे से कोई ग़लत उल्लेख तो नहीं होगया, यदि ऐसा हुआ हो तो फौरन अपनी भूलको स्वीकार करना चाहिये, और इस लिये मैंने बड़ी सावधानी से अपनी पुस्तक के साथ समालोचना की पुस्तक को खूबही गौर से पढ़ा और उल्लेखित ग्रंथों आदि पर से उसकी यथेष्ट जाँच पड़ताल भी की । श्रन्तको में इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि समालोच्य पुस्तक में एक भी ऐसी बात नहीं है जो खास तौर पर आपत्ति के योग्य हो । जिनसेनाचार्य कृत हरिवंशपुराण के अनुसार, 'देवकी' अवश्य ही वसुदेव की 'भतीजी' थी परन्तु उसे "सगी भतीजी " लिखना यह समालोचक जी की निजी कल्पना और उनकी अपनी कर्तृत है – लेखकसे उसका कोई सम्बन्ध नहीं है: ૫

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 179