Book Title: Vidwat Ratnamala Part 01
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Mitra Karyalay

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Page 7
________________ गच्छ ग्रहण करने योग्य होगा तो उसे ग्रहण करके मुझे उत्साहित करेगा।. . . . . . .. - जैनियोंको जैसे इतिहासकी आवश्यकता है उसकी पूर्ति अभी नहीं होगी-धीरे २ समय पाकर होगी। अभी तो हमारे यहां इस विषयकी चर्चा ही शुरू हुई है । दश वीस वर्षमें जब हमारी इस विषयकी . ओर पूर्ण अमिरुचि होगी, विद्वानोंके द्वारा इस विषयके सैकड़ों फुटकर लेख प्रकाशित हो लेंगे, अप्रकाशित और अप्राप्य ग्रन्थ छपकर प्रकाशित हो जावेंगे, उनका पठन पाठन होने लगेगा; तव कही किसी अच्छे विद्वानके द्वारा इसका संग्रह हो सकेगा। परन्तु इस विषयकी ओर समाजको अभीसे ध्यान देना चाहिए । यह बड़ी भारी प्रसन्नताकी वात है कि स्वर्गीय वाबू देवकुमारजीके जैनसिद्धान्त-भत्रनकी ओरसे केवल ऐतिहासिक विषयोंकी चर्चा करने'वाला एक स्वतंत्र पत्र प्रकाशित होने लगा है। इसकी बड़ी मारी आवश्यकता थी । आशा है कि इस पत्रसे जैनइतिहासके उद्धारकार्यमें बहुत सहायता पहुंचेगी । लगभग चार वर्ष पहले मैंने नैनहितैषी विद्वद्रत्नमाला नामकी लेखमाला लिखनेका प्रारंभ किया था। उसमें अब तक जितने लेख प्रकाशित हुए थे, प्रायः उन सबका इस पुस्तकमें संग्रह कर दिया गया है। यह लेखमाला अभी चल रही है और यदि कोई विघ्न उपस्थित नहीं हुआ तो आगे भी चलती रहेगी। इस लिये अब तकका यह संग्रह प्रथम भागके नामसे प्रकाशित किया जाता है। हो सका तो आगामी वर्ष इसका दूसरा माग भी प्रकाशित करनेका प्रयत्न किया जायगा । दूसरे भागमें महाकवि वादीमसिंह, पूज्यपाद, नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती, उमास्वामी, शुभचन्द्र, अकलंकभट्ट, कुन्दकुन्दाचार्य, स्वामिकार्तिकेय,

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