Book Title: Vasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Author(s): Dharmdas Gani, H C Bhayani, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 192
________________ चउत्थो बावीस - कण्णा - लंभो 12 अह पुणो वि मे सविनयं मेहमाळा भणइ - अज्जपुत्त ! देह आणं तासि पंचहं स्वयर-राय- सुयाणं सत्तरसण्ड य महिगोयर - कण्णगाणं जं जोम्गं करणिज्जं । ता मया भणियं - एत्थ सव्वाओ वि मे इमाओ पत्तीओ परं पमाणं । जं एयाउ तुमं भणितं मया करणिज्जं । ततो तत्थ केतुमतीए भणियं अंतो निगुढ-भासाए - किमेत्थ जा[ण] णिज्जं ? ति । पंच विय स्वयर- कण्णगाउ महिगोयर-वंद घेत्तणं कालधरं चेत्र णयंतु ति । लोगसुदरीए भणियं - अज्जपुतो पच्छाणुतावेणं * (?) वेइ । सुवेगाए भणियं - को एत्थ अज्जपुत्तस्स पर संतियासु कण्णासु पच्छाणुतावो ? ति । मया भणियं - परमत्थेणं ण ताउ पर-संतियाउ त्ति । सोतामणीए भणियं - कमो तुन्भं 'ताओ ? त्ति । मया भणियं - ताउ मे मेघमालाउ । सोदामणीए भणियं - मेघमाला तुम्भ कभ ? । मया भणियं- अच्छउ ताव सेसं । एसा मेघमाला हेमयसार दिण्णा । तीए भणिय - ताओ दे" को दाहिति ? ५ मया भणियं - मेहमाला, दाहिति । तीए भणियं-अम्हे ते ण देमो कामगाए (? का मुगाय) एत्तिए असंतुद्वाय । मया भणिय - सुयणु ! णाहं असंतुट्ठो । जा एक्का महानदी बहूई दि-सहस्साइं वेत्तुं सागरं समुवेइ, किं ताओ सागरो विणिच्छुभइ ! ततो हेममालिणीए भणियं - सच्चे ताव एयं अज्जपुत्त ! जहा णइ सहस्सेहिं सागरो इव दुप्पूरो तंसि विलग्गा ( ! या ) हिं । मया भणियं - नाहं दुप्पूगे | आणुकंपिए सरणागयवच्छलो य । तीए भणियं - जइ ते कोइ पर-वलेणं "जगदि ( डि) ज्जमाणो सरण उबेज, तस्स अणुकंप सरणं च करेज्जासि । तमो पुण संपयं ण केणइ अण्णाइजंति कण्णगाओ, सेव्वो (१) दाणिं अच्छाहि । विज्जुमतीए भणियं-हलाभो ! दिण्णे(०वे ) णं खु बलेणं ताओ " अन्माहयाओ, जुत्त ताव तासिं "का (वा) रं कार्ड | हेममालिणीए भणियं- कयरेण मण्णे बरेण ताओ "अम्माहयाओ ? विज्जुमईए भणियं-जेण ̈सगलं चिय तिहुयणं अज्जपुत्तो य विणिजतो । हेममालिणीए भणिय-हला ! केण पुण अज्जपुतो विणिज्जिओ ? त्ति । तीए भणिय - अणुपेच्छ, १. सन्वोओ खं० ॥। २. पेपच्छा० खं० ॥ ३. ण देई वा० ॥ ४. काओ खं० विना ॥ ५. ते खे० विना ।। ६. दाहिइ ख ० ।। ७. कामगार एकाए एत्तियं असंतुझ्या वा• ॥ ८. अपुत्तस्स जहा खं० विना ॥ ९ तुप्पूरो खे० ॥। १०. जगदिज्ज सरण खं० ॥। ११. अभयाओ खं० ॥। १२. गारिं काउं खं० विना ॥। १३. अमहयाओ वा० ॥ १४. सगणं खं० ॥ १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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