Book Title: Vasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Author(s): Dharmdas Gani, H C Bhayani, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 416
________________ 117.7 118.5 120.17 122 13 122.27 123.5 123.6 123.8 125.24 126.5 130.28 132.19 132,24 138.21 141.1 141.17 142.14 143.1 145.15 145.21 146.1 147.27 149.2 149 5 152.20 152.24 153.14 153.16 153.23 153.23 154 12 155 15 155 25 155.25 Jain Education International सुदर' ! णेमित्तिणि गदा कल-कलाविद [स] भुगदा अम्ह - दाण [? वाण ] अजार के ० अट्ठा पयच्छ मे । भुजदु णिक्ल' त दुरायारि • तुम्मे स्थ पभोत्तण पडिसीरिद परियरिति कहि सुहोविदो य । जाणिज्जाघ सुस्सूसु इह लोइय पार० भे तस्थ एएको चितितं पुत्ते घेत्तणं बुद्धाए कदिा पुणा डो विकता (१) ति भे Corrections बिणमोण घरणेण सुदठुदर णेमित्तिणि ! गदो कलकला विद [अ] भुगदा अम्हे - दाणव (१ दाणवाण' ) अजाए य के० अठो पयच्छध । मे भुंजदु णिक्खत बुयारं छाडा तुमेस्थ मोसून पडिसारिद परियरिति कह सुहोविदो य जाणिज्जाव । सुस्सू सुसु इहलोइय-पार• मे तत्थ य एको चितितं पुवेण घेणं बुद्धीए For Private & Personal Use Only पुणो बद्धो अवकता सि मे विमी धरणेण 329 www.jainelibrary.org

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