Book Title: Vasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Author(s): Dharmdas Gani, H C Bhayani, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 419
________________ 332 Vasudevahindi : Majjhima-khanda -गइंदालयं पह णामो -मइंदालयं पहणामो त सुमिजंदि परीति -मि(वि)उलअमदाई, परिति अच्छिदअ) दी(?दा) हामि समुप्पड़ता चंदिय-- अतद्धिदो पणयस्य दुद्धं पादपिकडितं च । कढिणसंपयुत्तणं पुत्तल्लिया सुणिजिदि परिति -मि(?)उलअमदाई परिति, उच्छिदअदीहामि समुप्पईतो चंदादवअंतद्धिदो पणयस्स दुद्धं । पादम्फिडितं च कढिण संपउत्ताणं पुत्तलिया कप्पापादव 207 14 20724 208.14 20४.21 210.13 210.15 210.15.16 211 16 213.10 214.15 216.7 217.22 222.5 223.2 224.16 226.18 226.21 227.17 227.28 22,9 22823 2295 2297 230.1 230.11 231.2 23211 237.6 237 11 237.20 23721 237.25 अणुरूवा किकरो कप्पपादव अणुरूवो किंकरो . कि-कारणं --विणा सदं तु(१पुण देव-कुल-कदस्स विलसिरा विय कंठिया -माला-वसंतचंदुज्जोवतिरेवमोसणं कि-कारणं -विणासिदं. तु(?)ण देव-कुल-गइस्स विलसिरा (वि) य कंठिया -मालावतंसचंदुजोवातिरेय-- मोत्तणं मुंच रुण्णा । ततो सोग-समुस्थाए होग्जानि(मि) रुण्णा ततो सोग-समुच्छोए होज्जाजि(सि) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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