Book Title: Vasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Author(s): Dharmdas Gani, H C Bhayani, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 414
________________ Corrections -रूवं । परि० पहसाणी य •वणत-(?ता) -विभव- ग)खयर. -गप्पुरमादयो -घोरिभ-खरपूरग 82.3 82.15-16 8224 8314 83.25 84.11 84.13 86.7 8722 88.19 89.1 89.3 895 89.5-6 89.10 89.18 पुरिसागर(१). -मणि-कण । रयण•भवण-पति बंधो-सो. तिसासुअबठ-तिय-जोषण नोयण-सत•तरो (?णमंतर. -सुरिदसहस्सू-सित -रूवं परि. पहसमागीय •यणत (सा) -विभव(?हग)-खयर. -कपूरमादमी -घो(घा)रिभ-खंडपूरगतहा पुरिसागरं . -मणि-कणग-रयण•भषण-पत्ति बंधो, सो. दिसासुअडद-तिय-जोयण-सत तरो(?ण)मतर० -सुरिंदसहस्सूसित 90.2 कं नभा-प्रदि -महद 908 90.16 90.28 91.1 91.4 92.3 92.4 92.22 93.10 93.15 93.19-20 93.21 949 95.7 958 96.15 -भासुर-महा० वहति, महदुमा समोभदठा हेमथसाप . तउ चिंतयामि सुहय (भा)गच्छामो भपेष्ठ --प्पदेस एस मे -हत्येण(वि)-तिरिन्छ-बलायणद्ध भावदि । -महंत-गंधु-भासुर महा. वह ति महदुमा, समोभठहेमचलाएतओ चिंतयामि । . सुहय अपेछ -पदेस, -हत्येण, . . -वितिरिच्छ-बलाणयद्ध -सहो इभो . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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