Book Title: Vasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Author(s): Dharmdas Gani, H C Bhayani, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२२३
पण्णरसमो कणगवई-लंभो तदो पविट्टो हं तदियं कच्छंतरं । तं च पेच्छामि तसि-किरण-खीरसागर-सरिस-बहल-तरंगाउलं फुरंतं पिव सफेणं दुद्धं पादम्फिडितं च । कढिणत्तणेण विण्णादं मे जहेदं खीर-कोट्टिमं । खीर-चिरिका-भयेणं संकिदो इव तत्थ पादे ठवेमि । तत्थ य पेच्छामि पउम-पत्त-गोरीणं सरिस-वयाणं सम-सरिस-गहिद-णेवत्थाणं तवणिज्ज-वण्ण-वर-खोम-परिहिदाणं सरिस-[२]दणावली-ववत्थिदोरत्थलाणं पीण-थण. भार-भरिद-विग्गहाणं हल्ली पय-गीद-गुणणि]-ददर-पुड क-तल-ताल-पिट्टणाणुगदाणं चेडीणं वंदं पेच्छामि । कणग-संचय-सयाणि य सुलक्खणाई गय-तुरग-भंडगाइं च दीसंति तत्थ विइत्ताई।
तदो पविट्ठो हं चउत्थं कच्छंतरं। तं च णव-सरद-काल-वियलिद-तरंगसंकुल-फुरंत-कंत-वर-विमल-सलिल-पुण्णं पिव सरं । चितिदं च मे-एद जलं । जल-कोट्टिमं एद पूर्ण खु । एत्थ मंते उर-वर-जणो आदस-गहणालस्सालुओ पेच्छंतो अणायासेणं अत्ताणं पसाधयति । तत्थ य पेच्छामि विविधाई कुट्टिगाइ कणग-पंजर-जुताई सुभग-सारिगा-हंस-कोगिल-मयूर-वर-चकोरादीणं मेधुणाई कुसलजण-संगहादस-मंडल-जलकोट्टिम-संकंत-छाया वलोगणाई सुभासिद-गहण-संजोइदाई सिलोग-पढण-मम्मण-भासयाई चिट्ठति । तत्थेव पहुद-हेम-वण्णाणं सरिसरूव-वपु-वय-धारिणीणं णील-सुहम-पट्ट-परिहिदाणं सरिस-मणि-रयण-रसणा-कलावपैविराइद-विपुल-सुद्ध-जहणाणं सरिसाभरण-भार-धारीणं पभूद-जोवणाणं वीणासारण-तंति-प्पहार-मुच्छणा-वादण-गीद-करण-वावडाणं चेडोणं वंदं पेच्छामि ।
तदो पविट्ठो हं पंचमं कक्खंतरं । तं च पेच्छामि पवर-मरगद-मणिरदण-पेहला-विराइदं हरिद-पउमिणि-पत-संछण्णं पिव वावो-जलं भदीव-सस्सिरोयाभिरामं । विण्णादं च मे कघिदं जहेदं पउम-पत्तकं णाम मरगद-कोट्टिमं ति । उवरिं च विसत्ताणं पउमराग-मणि-मोत्तिय-विहु म-दाम-चामरादीणं तत्थ छायामओ संकंताओ दोसंति । चिंतितं च मे-किध ताई सोभा-करणाई एस्थ णिहिदाई दीसंति ? तदो उवरि अवलोएतेण ताणि दिवाणि मे। तत्थ य णाणा-विधाणं कणग-रयण-मणि-मोत्तियाभरण-मंडयाणं मज्जण-सोधण-विधारणससंजोगमावत्तणाइ बहुसो संति । तत्थेव य विविध-करणि-रा(ग)य-दंतसंपादिम-खंभ-परिग्गहावलग्गाणं भिंगंग-मयुर-कंठ-वर-सरिस-वण्णाणं पीद-वास
१ भार-रद-भरिद खं•मो० विना ॥ २ जुद्धियाई खं० । जुट्टियाई मो० ॥३ मिहणाई मो० ॥ ४ साएयाइ ख० मो० विना ॥ ५ परिवाइद ख. मो. विना ॥ ६ वोच्छोमि मो० ॥ ७. याभिगम खं० मो० विना ॥
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