Book Title: Vasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Author(s): Dharmdas Gani, H C Bhayani, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Corrections
323
म-कन्ज सिल
मम का सेल
आभट्टा कह व चरिमसरीरी [ण अ] हरि(?)ति मु(झ)त्ति
रोत्तवय' सिहरि-दसणे
तुम
10.4 12.7 13.13 13.21 14.10 14.13 14.13 14.21 15.2 15.10 15.19 15.24 17.4 18.2 18.3 188 18.13 18.19 18.26 19.9 19.10 19.22 20.10 20.15 20.15 21.5 21.7 21.10 21.17 22.8 22.15 22.19 23.4 23.6 23.10
आरुहा कह च नरिमसरीर (ण अ) हरिति मु(झ)त्ति गेतब्वय सिहर-दसणे तुमे सुकय•पर-परि० -पितिसम्मत्तदेवो -मणियपीति-. काहिं आसुअन्त तन्व(१)सिद्धीए सह-पत्ती सुसज्जा -जिग्गह-सहात्तिमंग-कदल-गम्भ सरिस-तणु. -सरिसमुदय -स(?सहित -सुरत ममरउवगता
यण-हरिणी मसुरप भत्तुणा -जितासणाए अकोववेसणेण(?)
सुकया. -वर-परि० -पीतिसम्मतदेवो -भणिइपीति किच्छाहि. आसुअंत तब्व(वञ्च) सिद्धीए मह पत्ती सज्जा -णिगाय • रुइरुत्तिमग(१)•कदलि-गम्भ. सरिस-तणु स(?सि)रि-समुदय -सहित(?संहत) -सुरत-समर-- उवागता णयण-हारिणी
मसूरए
मत्तणो
-जिजतासणाए कोववेसणेण
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