Book Title: Vasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Author(s): Dharmdas Gani, H C Bhayani, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 411
________________ 324 Vasudevahindi : Majjhima-khanda पगासिते कंत काउंस्सग्गबालचंद्रा कत पगासित कति का उसगाबालचंद्रा । कत 23.10 24.2 2423 25.5 25.10 27.11 27.11 27 12 27.13 27.18 27.24 28.5 तलायरउत्तमय-जुहाईणक 28.6 28.10 28.13 28.17 28.18 29.2 29.7 299 2919 30.2 30.5 30.7 30.9 30.11 31.12 32.21 33.9 33.25 3326 34.10 36.10 36.18 36.25 सविप्प-सणिमाहित होहिति एक्कए पेच्छह आयासिता य दसेति वित्थ प्पभायय अट्ठ(१ज्ज)पुत्ता ਐਸ -विरागुज्जल - -केत्तिमय-तिगिच्छ-- तज्जलकरण डढणा-- •पयस्कर ससववो(१हो)णीन. सित-मसित४पूजितो सललित, भगव, कासि ताय त्ति कि तालायर-उत्तमय(१)-जडाईण -उड सविग्घ-सणिहित होति एवं कर पेच्छहि भायासिताय दसेति वि एस्थ पभायय अट्ठ(१ज)पुत्त अत्थाम -विगारुज्जलकित्तिमयतिगिच्छितज्जल(?)-करण-कहदण - पयर-कर० ससववो हो)वणीत. सितमसित - पूजितो, सललित भगव । कासि ताव त्ति । कि सिदठा तिस्थाभिमुहेसु समण -जुव(बुध)• कारो(१ री) सिद्धा तिस्थाभिमुहे सुसमण. -जुवकारो(? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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