Book Title: Vasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Author(s): Dharmdas Gani, H C Bhayani, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 378
________________ Appendix-11 291 सुह(ण)सु वन्न(?) मुही(? सही) ! दिट्टि(१धिट्टो) -हिदया भ(? ध)रित वत्था -कठ-गाहितो(ता)। भणि. विमा[स]हिता य । समरे(?णु)भूत दइयद(?वो) सम्मुहे। वो मया तुह सगास परिसतय तेण भणिदा 51.6 सुहसुवन्नमुही ! 51.9 दिदिठ(?) 52.7 -हिदयाभरितवत्था (?) 52.10 -के-गाहि । तो भणि 52.18 विज्ञाहिता य? 53.3 समरे(?)भूतं 536-7 दइयद ! सम्मुहे। (?, वो 53.16 मया तु हस.......भणिदा 53.22 तलवेलय 54.11-12 भूतनरच्छिस्तुदीय54.25 के (1) 55.2 मरहावहरणं(?) 55.3 कप्पदाउ(१) वप्पभवंतो पिय. 55.7 -मधु-करवण (2)56.7 तत्थ पडिरूवं चेडि-जुवलयं(?)। 5617-18 न याह इच्छिदा | ववसितो 56.25 भत्तार वाडेहिह (?) 57.16 सबधा य' काउ 58.12 (अ)विप्पसम्न 59.14 एसा पडि.' 59.15 तवा(घा)गलिदासु =केण मरहा()यहरणं कम्पलदा-(उव)प्पभव तोपिय(?). -मधुकर-बणतस्थ [आगत] पडिरूव चेडि-जुवलय । न या इच्छि[य] | दाव विवसितो भत्तार [ण विवाडेहिह सबधा य' [रित] काऊ अवि(! दि)प्पसन्न एत seems to be missing after एसा. तवागलिदासु [-तप-आकलिताभिः].Emendation is unnecessary. दी[सति] सु (१ सि) मुहल is used in the sense of मुह in several places in VHM. So emendation is unnecessary. 371a'a = to wait तावि(? व) यThis is a Gatbaकाल वेलं अहिद हिद च गुणदासमत्तणो थाम । जाणंति [जे] गमा वेक्कम' च किं ते न-याणंति ?।। Possibly for विवत्ती we should have निवत्ती-Sk. निवृत्ति. 59.17 59.23 59.26 दी(?), सु(खु) -मुहलो(?ओ) 60.11,14 ओल बिज्जङ, ओल बेह 60.12 ता विय (2) 60.12-13 काल.........न याणति ? 60.14 विवत्ती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422