Book Title: Vasudevahimdi Madhyama Khanda Part 1
Author(s): Dharmdas Gani, H C Bhayani, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 298
________________ समो हरिकता - लंभो २११ स्वर - लोएण सह इवागदेा । कण्णा य हरिकंता-दि-जाद-दोहल-पसवा हरिकंता जाम, एसा जा तुम्मेहिं मम सीह-रूप-ठिदस्स पासे दिट्ठा । तत्थ य उत्तराए सेटीए गगणणंदणं णाम विज्जाघर - नगरं । तत्थ राया सुवेगो णाम । तस्स देवी भाणुमदी णाम । तीय पुत्तो भाणुवेगो णाम कुमारो । सो वि राया अचंतजिण वयण भाविद-मदी सावओ । अहं पुण अच्चंत मिच्छदिट्ठो जिण-वयण - बाहिरो । तस्य महं च पिति पिदा मह-परंपरागदं दीह कालियं वेरं । सोय विनासु ममाहिओ अब बलवओ, ण चाएमि तं संजुए जोधेदुं । सो य पभवंतो वि ममं मरिसेति । अहं पुण तस्स असतीए खमामि । अण्णदा य सो राया गुणदिण्णागाणं चारण-समणाणं अंतिए घम्मं सोदृणं जाद-संवेगो भाणुवेगस्स रज्जं दादूर्ण पव्वइदा अधिगद-सुत्तत्थ मित्तारि णिन्त्रिसेसो खंतिस्वमो जिदिदिओ जीविदासमरणभय-विप्यमुक् को संजमं समधिज्जमाणो विहरदि । * अणदाय अहं दाहिण-भरध- दट्ट्व-सप्पिवासो वेदड्ढोवरिएणं लंघे दूर्णं अद्वावयं फवदं पत्तो । तत्थ य जिणायदण-संसिते सेल- सिहरे एगंत - देस-ठिदो मया गागी राय-रिसी सुवेगो निच्चल-वोसटु- चत्त- देहो पडिमोवगदो सेलो इव णिक्खोभो दिट्ठो । तदो हैं तं महरिसिं दद्रूणं कागो इव पर पहदि- छिद्दण्णेसी पुव- वेर - बद्धाणुसओ, एस मे रिवू हंतव्वोत्ति एवं चितयंतो अच्छिद स्वग्गो समल्लीणो (हं) तदो अहं तस्स पहरिदुकामो | संपत्तीए य तम्मि देस-काले धरणो नाग-राया सव्विड्ढीए आदिकर-परिणिव्वाण-भूमीए वंदओ पत्तो । दिट्ठो य अहं सयमेव णाग - रण्णा रिसिणो पहरिदुकामो । तदो भणिदो हैं णाग- रण्णा - हा हा दुरायार ! कुविज्जाघराधिपदि ! गगण-गमण-गव्विद ! मा रिसिणो पहरीहिसि मा ते दप्पं पणासेमि । एवं भणंतेण तेण अच्छिण्णाओ मे सव्य विज्जाओ । ततो विजावहारंणादूणं परम-भय- मेइदो पणदो [ह] मुणिणो णाग-रण्णोय । सुवेगरस य भगवदो तं समयमेव परम-सुक्क - ज्झाइणो सुहुम-किरियं तदिय-भेदंतरं अणियट्टिकरणं पविट्ठस्स केवल-णाणं समुप्पण्णं । केवलि - महिमा - णिमित्तं च अहासणिहिदा सुरगणा विज्जाघरा य उवागदा तत्थ । कदा य मे तेसु महदो केवलमहिमा । कधिदो य तेण भगवदा संसार-विमोयदो (ओ) धम्मो सुर - विज्जाघरादी । करतल-गर्द पिव तेण दरिसिदं पुण्ण - पाव फलं मोक्ख- मग्गो य । इदो य मम तत्थ जिणाभिहिदो घम्मो, गहिदाणि य मे सावय-वदाई | पणदेण य मे १. अच्छंदि खं० मो० विना ॥ Jain Education International २ रुदियिदो मो० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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