Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 15
________________ 14 १० घड्डमाणचरिउ पृ. कड. पं. अशुद्ध शुद्ध पृ. कड. पं. अशुद्ध १५२ - -- ५ ६ ६ २०० ३ ६ सह संसु १५४ १६ २ पविउलुवि पविउलु वि । २०१ २ १२ शैलीन्द्र १५६ १८ १२ सम्मत्त हो सम्मत्तहो | २०५ ६ १६ नकर १५८ संस्कृत श्लोक २ सबंध सद्वन्धु | २०६ ८ १३ तहेथणइँ १६० १ ९ विस वि स | २०८ १० ७ जाणि ऊण १६० २ ६ तित्थमलि ण मुह तित्थ मलिणमुह २२२ २३ ११ गंधउ इहिं २२५ शीर्षक - सन्धी १७० ११ ५ तणउं तणउँ २३२ ८ १ कुरिक १७२ १३ ३ वण्य वण्ण २३३ ८ २ गोमिन् १७७ २ ५ अयमहुरत्तणु अय महुरत्तणु २३४ ८ १२ पंचमेय १८२ ५ २ विण विण २४० १२ अवजाढउ १८५ ६ १ सुसिर सुषिर २४६ १८ १० १५ । १९० १३ १३ पणवे वि पणवेवि २५० २१ १५ धम्महिँ १९० १३ १३ पोढिसु पोढिलु २५१ २१ २१ घम्मा १९२ १५ ८ साहुचंदु । साहु चंदु २७२ ३८ नारिस १९४ १६ १२ सहइरवि सहइ रवि २७६ ४० १८ सोमिचंद १९६ संस्कृतश्लोक ३ व्योम्नि] व्योम्नि]पूर्णचन्द्रः २७६ ४१ ८ सएणवहिँ पूर्णचन्द्रः प्रशस्यते २७७ ४१ ३ करनेवाले प्रशस्यते नरश्रेष्ठ शुद्ध सहसंसु शैलीन्ध्र सुनकर तहे थणइँ जाणिऊण गंधउहहिँ सन्धि कुक्खि गोभिन् पंचभेय अवगाढउ १० धम्महिं धम्मा ना रिस णेमिचंदु सए-णवहिँ करनेवाली महिलारत्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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