Book Title: Vaddhmanchariu
Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ बारहवीं शताब्दी के अपभ्रंश-ग्रन्थ 'वड्डूमाणचरिउ' का सम्पादन और अनुवाद कर डॉ. राजाराम जैनने एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । विबुध श्रीधर विरचित यह ग्रन्थ सम्भवतः महावीर - चरितसे सम्बद्ध पहली स्वतन्त्र रचना है। अतः भाषा, रचना - रीति और अनाविल कथ्यकी दृष्टिसे इतने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थको बृहत्तर पाठक समुदायके समक्ष प्रस्तुत करने के इस स्तुत्य प्रयासकी हम सराहना करते हैं और सम्पादक तथा प्रकाशक - दोनों का वर्द्धापन करते हैं । मूल्यांकन विद्वान् सम्पादक ने सूक्ष्मेक्षिकापूर्ण विस्तृत प्रस्तावना में 'वड्डमाणचरिउ' की जो प्रमाणपुष्ट और सारगर्भ विवेचना की है, वह शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी है । प्रति-परिचय, ग्रन्थकारपरिचय, काल-निर्णय, आश्रयदाता, मूल कथानक, परम्परा और स्रोत, अलंकार - विधान, रस- परिपाक तथा दर्शन और सम्प्रदायपर प्रभूत सामग्री देकर सम्पादकने पाठ-सम्पादन को उच्चस्तरीय शिल्प- विधिका निर्माण किया है, जो वैदुष्यपूर्ण होनेके कारण अनुकरणीय है । रचना - रीतिकी दृष्टिसे यह लक्ष्य करने योग्य है कि 'वड्डूमाणचरिउ' की रचना सन्धियोंमें की गयी है तथा इसके छन्दोविधान में कड़वक - घत्ता-शैली अपनायी गयी है । एक ओर मंगल-स्तुति और ग्रन्थ प्रणयन - प्रतिज्ञासे ग्रन्थ-रचनाके मध्यकालीन स्थापत्यका पता चलता है, तो दूसरी ओर सितछत्रा नगरके ललित वर्णनसे वर्णक - साहित्य परम्परा में प्रचलित नगर वर्णन प्रणालीका प्रभाव परिलक्षित होता है । इस प्रकार अनेक दृष्टियोंसे अध्येतव्य ऐसे रोचक ग्रन्थको पाठक समुदायका स्नेह-समादर मिलेगा - यह मेरा सहज विश्वास है । १८-९-७५ Jain Education International - डॉ. कुमार विमल भू. पू. हिन्दी विभागाध्यक्ष - पटना कालेज, तथा सदस्य - बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन - पटना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 462