Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 17
________________ | श्रुत सेवा प्रस्तुत आगम "श्री उत्तराध्ययन सूत्रम्' के तृतीय भाग का प्रकाशन सर्वजन हितैषी, सुश्रावक रत्न स्व. श्री सुशील कुमार जैन सुपुत्र स्व. श्री रिखीराम जी जैन (मालिक संगम विवर्स) की पुण्यस्मृति में उनकी धर्मपरायण धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला देवी जैन व उनके सुपुत्र श्री संजय जी जैन के अमूल्य सहयोग से सम्पन्न हुआ है। ___ मान्यवर श्रीमान् सुशील कुमार जी जैन अति सुप्रतिष्ठित व सम्माननीय व्यक्तित्व के धनी व प्रतिभाशाली भद्र पुरुष थे। देव, गुरु और धर्म के प्रति वे सदैव समर्पित रहते थे। दीन-दुखियों की सेवा करना वे सदैव अपना परम कर्तव्य मानते थे। अपने कर्त्तव्य के प्रति निष्ठा भावना से समर्पित होते हुए वे सदैव गरीबों-असहायों की तन-मन-धन से सेवा करते हुए आत्मविभूति सा आनन्द प्राप्त करते थे। ___ सहायता चाहे शिक्षा के क्षेत्र में हो, चाहे धार्मिक शिक्षा हो, चाहे स्वाध्याय हो, प्रत्येक क्षेत्र में उनका अमूल्य सहयोग सदैव समर्पित रहता था। उनकी एक बहुत बड़ी आकांक्षा थी कि रोगियों की सेवा के लिए एक सर्वसुविधापूर्ण उपचार केन्द्र अवश्य होना चाहिए जहां पर असमर्थ, बेसहारा और दीन-दु:खी लोग कम व्यय में अथवा नि:शुल्क अपना उपचार करवा सकें। उनकी इसी अभिलाषा के फलस्वरूप उन्हें एक सुसंयोग मिला। पंजाब प्रवर्तक उपाध्याय श्रमण श्री फूलचन्द जी महाराज की सप्रेरणा से रोगियों के उत्थान, कल्याण व उद्धार हेतु "आचार्य श्री आत्माराम जैन स्वास्थ्य सेवा समिति (रजि.) लुधियाना" का गठन किया गया और श्री सुशील कुमार जी को उक्त समिति का प्रधान नियुक्त किया गया। श्री सुशील कुमार जी अपने अंत:करण की अभिलाषा को साकार बनाने हेतु विशाल अस्पताल निर्माण योजना में जुट गए। उन्होंने अपने कठिन परिश्रम, निष्ठा व समर्पण भावना के फलस्वरूप "उपाध्याय श्रमण श्री फूलचन्द जैन चैरिटेबल अस्पताल' का निर्माण कार्य सुन्दर नगर लुधियाना में शुरू किया। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि यह अस्पताल शीघ्रातिशीघ्र अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु कार्य करना शुरू कर दे, जिसके लिए वे पूरे समर्पण भाव से प्रयासरत भी थे। परन्तु विधि की विडम्बना कहिए अथवा आयुष्य कर्म का विधान कहिए, वे इस कार्य को शुरू तो कर गए पर इसे पूर्ण होता हुआ नहीं देख पाए। उनके सपनों का मंदिर विशाल हस्पताल आज रोगियों की सेवा में समर्पित है, परन्तु श्री सुशील कुमार जी हमारे मध्य में नहीं हैं। हम सोचते हैं कि अरिहंतों और गुरुदेवों के साथ-साथ उनकी कृपा दृष्टि भी इस अस्पताल पर बनी हुई है। ऐसे महापुरुष संसार में कम ही मिलते हैं। वे भले ही शारीरिक रूप से हमारे मध्य में नहीं हैं, परन्तु उनके चले जाने से उत्पन्न हुई एक बहुत बड़ी कमी को उनके परिवार जन विशेषकर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला देवी जैन व सुपुत्र श्री संजय जैन यथासंभव पूर्ण करने के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं। उन द्वारा स्थापित आदर्शों का यथासंभव पालन होता रहे व परिवारजन उनका अनुसरण करते हुए उनके चले जाने के कारण उत्पन्न हुए शून्य की पूर्ति यथासंभव होती रहे, ऐसी हमारी मंगलकामना है। आत्म-ज्ञान-श्रमण-शिव आगम प्रकाशन समिति प्रस्तुत "श्री उत्तराध्ययन सूत्रम्" तृतीय भाग के प्रकाशन हेतु सम्प्राप्त सौजन्य के लिए हार्दिक-हार्दिक धन्यवाद करती है। आत्म-ज्ञान-श्रमण शिव आगम प्रकाशन समिति, लुधियाना भगवान महावीर मेडिटेशन एण्ड रिसर्च सेंटर ट्रस्ट, दिल्ली (x)

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