Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay, 
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 1200
________________ उत्तराध्ययन सूत्रम् ११५८ || ilsil Mell ||sil lls lol मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस होंती सागरा मुहुत्तहिआ । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पम्हलेसाए ।।३८।। जलेश्यानाम Isl व्याख्या - इयं ब्रह्मलोकस्वर्गे च बोध्या ।। ३८।। चतुस्त्रिश Nell मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिआ । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा सुक्कलेसाए ।।३९।। मध्ययनम् व्याख्या - एषा अनुत्तरविमानेषु मन्तव्येति सूत्रषट्कार्थः ।। ३९।। प्रकृतमुपसंहरन्नुत्तरग्रन्थसम्बन्धमाह - एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई उ वण्णिआ होई । चउसुऽवि गईसु एत्तो, लेसाण ठिइं तु वोच्छामि ।। ४०।। व्याख्या – 'ओहेणंति' ओघेन सामान्येन ।। ४०।। प्रतिज्ञातमाह - दसवाससहस्साई, काऊए ठिई जहनिआ होई । तिण्णुदही पलिओवम-असंखभागं च उक्कोसा ।। ४१।। व्याख्या - दशवर्षसहस्राणि कापोतायाः स्थितिघन्यका भवति, त्रय उदधयः सागरोपमाणि 'पलियमसंखभागं चत्ति' पल्योपमासङ्ख्येयभागश्चोत्कृष्टा । इयं च जघन्या रत्नप्रभायामुपरितनप्रस्तटनारकाणामेतावत्स्थितीनां, उत्कृष्टा च । वालुकाप्रभायामेतावत्स्थितिकनारकाणां प्रथमप्रस्तट एवेति भावनीयम् ।। ४१।। तिण्णुदही पलिअमसंखभागो उ जहण्ण नीलठिई । दस उदही पलिओवम-असंखभागं च उक्कोसा ।। ४२।। व्याख्या - नीलाया जघन्या स्थितिर्वालुकाप्रभायां, उत्कृष्टा धूमप्रभायां प्रथमप्रस्तटे ।। ४२।। ॥ ११५८ liel Mall ||sil in Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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