Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay,
Publisher: Sanmarg Prakashan
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उत्तराध्ययन
सूत्रम् १९८३
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उक्कोसोगाहणाए उ, सिझंते जुगवं दुवे । चत्तारि जहण्णाए, जवमज्झट्टत्तरं सयं ।।५३।।
is जीवाजीव
il विभक्तिनाम व्याख्या - 'जवमज्झत्ति' यवमध्यमिव यवमध्यं मध्यमावगाहना तस्यामष्टोत्तरं शतं, यवमध्यत्वं चोत्कृष्टजघन्यावगाहनापेक्षया अस्या ।
षटत्रिंशKi बहुतरसङ्ख्यात्वेन पृथुलतयैवावभासमानत्वात् ।।५३।।
मध्ययनम् चउरुड्डलोए अदुवे समुद्दे, तओ जले वीसमहे तहेव य ।
सयं च अद्रुत्तर तिरिअलोए, समएण एगेण उ सिज्झई धुवं ।। ५४।। व्याख्या - चत्वार ऊर्ध्वलोके, शेषं स्पष्टमिति सूत्रचतुष्कार्थः ।।५४।। अथ तेषामेव प्रतिघातादि प्रतिपादनायाह - कहिं पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइट्ठिआ । कहिं बोदि चइत्ता णं, कत्थ गंतूण सिज्झइ ।।५५।।।
व्याख्या - क्व प्रतिहता: स्खलिताः सिद्धाः ? क्व सिद्धाः प्रतिष्ठिताः साद्यनन्तं कालं स्थिताः ? व बोन्दिं शरीरं त्यक्त्वा ? क्व गत्वा । IS 'सिज्झइत्ति' सिध्यन्ति निष्ठितार्था भवन्ति ? ।।५५।। अत्रोत्तरमाह -
अलोए पडिहया सिद्धा, लोअग्गे अ पइट्ठिआ । इहं बोंदि चइत्ता णं, तत्थ गंतूण सिज्झइ ।।५६।। व्याख्या - अलोके केवलाकाशरूपे प्रतिहता: सिद्धाः, तत्र धर्मास्तिकायाभावेन तेषां गतेरभावात्, लोकाग्रे च प्रतिष्ठिताः सदावस्थिताः, ननु ।
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