Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay,
Publisher: Sanmarg Prakashan
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Islil llell
उत्तराध्ययन
सूत्रम् १९८८
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Isll पुढवी आउ जीवा य, तहेव य वणस्सई । इञ्चेते थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ।। ६९।।
का जीवाजीवINS
विभक्तिनाम व्याख्या - स्पष्टम्, नवरं इह तेजोवाय्वोर्गतित्रसत्वेन स्थावरमध्येऽनभिधानम् ।। ६९।। पृथिवीकायिकानाह - Ill Isl
is षटत्रिंशदुविहा पुढवीजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पजत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ।।७०।।
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मध्ययनम् व्याख्या - द्विविधाः पृथिवीजीवास्तु सूक्ष्माः सूक्ष्मनामकर्मोदयात्, बादरा बादरनामकर्मोदयात्, ‘पजत्तमपजत्तत्ति' Mell आहारशरीरेन्द्रियोच्छासवाग्मनोनिष्पत्तिहेतुदलिकं पर्याप्तिस्तद्वन्तः पर्याप्ताः, तद्विपरीता अपर्याप्ताः, एवमेते सूक्ष्मा बादराश्च प्रत्येकं द्विधा डा का पुन: ।। ७०।। पुनरेषामेवोत्तरभेदानाह -
____ बायरा जे उ पजत्ता, दुविहा ते विआहिआ । सण्हा खरा य बोधव्वा, सण्हा सत्तविहा तहिं ।। ७१।। Isil islil
व्याख्या - 'सण्हत्ति' श्लक्ष्णा चूर्णितलोष्टुकल्पा मृदु पृथिवी तदात्मका जीवा अप्युपचारतः श्लक्ष्णा एवमुत्तरत्रापि, खरा is कठिना ।। ७१।। सप्तविधत्वमेवाह -
किण्हा नीला य रुहिरा य, हालिद्दा सुक्किला तहा । पंडू पणगमट्टीआ', खरा छत्तीसईविहा ।।७२।।
व्याख्या - 'कृष्णा नीला 'रुहिरत्ति' 'रक्ता हारिद्रा शुक्ला 'पंडुत्ति' पाण्डुः पाण्डुराईषच्छुक्लत्ववतीत्यर्थः, इत्थं वर्णभेदेन षड्विधत्वमुक्तं, इह ||sil
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