Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay,
Publisher: Sanmarg Prakashan
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उत्तराध्ययन
सूत्रम
१२१२
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iii कप्पातीता उजे देवा, दुविहा ते विआहिया । गेविजाणुत्तरा चेव, गेविजा नवविहा तहिं ।। २१०।।
M जीवाजीवव्याख्या - 'गेविज्जाणुत्तरत्ति' ग्रैवेयकेषुभवा ग्रैवेयकाः, अनुत्तरेषु प्रकमाद्विमानेषु भवा आनुत्तराः ।। २१०।।
विभक्तिनाम ||61
Moll षटत्रिंशहिट्ठिमाहिट्ठिमा चेव, हिट्ठिमा मज्झिमा तहा । हिट्ठिमा उवरिमा चेव, मज्झिमा हिट्ठिमा तहा ।। २११ ।।
Isl मध्ययनम् मज्झिमा मज्झिमा चेव, मज्झिमा उवरिमा तहा । उवरिमा हिट्ठिमा चेव, उवरिमा मज्झिमा तहा ।। २१२ ।। उवरिमा उवरिमा चेव, इइ गेविना सुरा । विजया वेजयंता' य, जयंता अपराजिआ ।।२१३ ।। सव्वट्ठसिद्धगा चेव, पंचहाऽणुत्तरा सुरा । इइ वेमाणिआ एएऽणेगहा एवमायओ ।। २१४ ।।
व्याख्या - ग्रैवेयकेषु हि त्रीणि त्रिकानि, तत्र प्रथमत्रिकं अधस्तनत्वेन हिट्ठिममित्युच्यते, तत्रापि प्रथमं ग्रैवेयकमधस्तनाधस्त- 161 on नत्वेन हिट्ठिमहिट्ठिममिति, तत्र भवा देवा हिट्ठिमाहिट्ठिमा इति । एवं सर्वत्रापि भावनीयम् ।।२११, २१२, २१३।। ॥ इहोत्तरार्द्धनानुत्तरविमानानाह ।। २१४ ।। लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे वि वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं चउब्विहं ।। २१५ ।।
|| संतई पप्पऽणाईआ, अपज्जवसिआवि अ । ठिइं पडुच साईआ, सपजवसिआवि अ ।। २१६।।
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