Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay, 
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 1241
________________ उत्तराध्ययन सूत्रम् १९९९ जीवाजीवविभक्तिनाम षटत्रिंशमध्ययनम् क Poll Moll all II || Nell Ill संतई पप्पऽणाईआ, अपज्जवसिआ वि अ । ठिईं पडुश्च साईआ, सपज्जवसिआ वि अ ।।१३१।। वासाइं बारसेव उ, उक्कोसेण विआहिआ । बेइंदिअआउठिई, अंतोमुहत्तं जहन्निआ ।।१३२।। संखेजकालमुक्कोसा, अंतोमुत्तं जहनिआ । बेइंदिअकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ।।१३३ ।। अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहण्णयं । बेइंदिआण जीवाणं, अंतरे विआहि ।।१३४।। एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ।। ।।१३५।। त्रीन्द्रियानाह - तेइंदिआ उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिआ । पजत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ।।१३६।। कुंथू पिपीलि उदंसा, उक्कलुद्देहिआ तहा । तणहारकट्ठहारा, मालुगा पत्तहारगा ।।१३७।। कप्पासट्ठिमिंजा य, तिंदुगा तउसमिंजगा । सद्दावरी अ गुम्मी अ, बोधव्वा इंदकाइआ ।।१३८।। इंदगोवगमाइआउणेगहा एवमायओ । लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ विआहिआ ।।१३९।। व्याख्या - इह कुन्थुप्रमुखाः केचित्प्रतीताः, गुल्मी शतपदी, केचित्तु यथासम्प्रदायं ज्ञेयाः ।।१३९।। Isl Hell ||७|| Isl ११९९ leil liall nel Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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