Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay, 
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 1243
________________ ॥७॥ isl leil Isl उत्तराध्ययन सूत्रम् १२०१ Pell जीवाजीव6 विभक्तिनाम षटत्रिंशमध्ययनम् Wall llol इय चउरिंदिआ एएऽणेगहा एवमायओ । लोगेगदेसे, ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहि आ ।।१४९।। संतई पप्पऽणाईआ, अपज्जवसिआवि अ । ठिइं पडुञ्च साईआ, सपज्जवसिआवि अ ।।१५०।। छञ्चेव य मासाऊ, उक्कोसेण विआहिआ । चरिंदिअआऊठिई, अंतोमुहुत्तं जहण्णिआ ।।१५१।। संखेजकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नगं । चउरिदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ।।१५२।। अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नगं । चउरिंदिआण जीवाणं, अंतरेअं विआहि ।।१५३।। एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ।।१५४ ।। पञ्चेन्द्रियानाह - पंचिंदिआ उ जे जीवा, चउबिहा ते विआहिआ । नेरइआ तिरिक्खा य, मणुआ देवा य आहिआ ।।१५५।। नैरयिकानाह - नेरईआ सत्तविहा, पुढवीसु सत्तसु भवे । रयणाभसक्कराभा, वालुआभा य आहिआ ।। १५६।। पंकाभा धूमाभा, तमा तमतमा तहा । इति नेरइआ एते, सत्तहा परिकित्तिआ ।।१५७।। Isil sil II || llsil Isil १२०१ www.jainelibrary.org Jain Education international For Personal & Private Use Only

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