Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay, 
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 1239
________________ उत्तराध्ययन सूत्रम् १९९७ ||sil lle! ||७|| एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ।।११६ ।। 5. जीवाजीववायुजीवानाह - विभक्तिनाम षटत्रिंशदुविहा वाउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पजत्तमपजत्ता, एवमेए दुहा पुणो ।।११७।। मध्ययनम् बायरा जे उ पजत्ता, पंचहा ते पकित्तिआ । उक्कलिआ मंडलिआ, घण गुंजा सुद्धवाया य ।।११८।। व्याख्या - 'पंचहत्ति' पञ्चधेत्युपलक्षणं, अत्रैवास्याऽनेकधेत्यभिधानात् । उत्कलिका वाता ये स्थित्वा २ वान्ति, मण्डलिका वाता वातोलीरूपाः, घनवाता रत्नप्रभाद्याधाराः, गुञ्जावाता ये गुञ्जन्तो वान्ति, शुद्धवाता: सहजवाता मन्दानिलादयः ।।११८।। संवट्टगवाए अ, णेगहा एवमायओ । एगविहमनाणत्ता, सुहमा ते विआहिआ ।।११९।। व्याख्या - संवर्तकवाता ये बहिः स्थितमपि तृणादि विवक्षितक्षेत्रान्तः क्षिपन्ति ।।११९।। सुहुमा सव्वलोगंमि, लोगदेसे अ बायरा । एत्तो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं चउव्विहं ।।१२० ।। संतई पप्पऽणाईआ, अपज्जवसिआवि अ । ठिइं पडुच साईआ, सपज्जवसिआवि अ ।।१२१।। तिण्णेव सहस्साइं, वासाणुक्कोसिआ भवे । आऊठिई आऊणं, अंतोमुहुत्तं जहनिआ ।। १२२ ।। असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहत्तं जहन्निया । कायठिई वाऊणं, तं कायं तु अमुंचओ ।।१२३।। ११९७ For Personal & Private Use Only

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