Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay,
Publisher: Sanmarg Prakashan
View full book text
________________
॥७॥
उत्तराध्ययन
सूत्रम् ११८९
lIsl
6 चपाण्डुरग्रहणंकृष्णादिभेदानामपि स्वस्थाने भेदान्तरसम्भवसूचकम् । पनकोऽत्यन्तसूक्ष्मरजोरूपः स एवमृत्तिकापनकमृत्तिका, पनकस्य चनभसि कि जीवाजीवकि विवर्त्तमानस्य लोके पृथ्वित्वेनारूढत्वाद्भेदेनोपादानम् ।खरा पृथ्वी षट्त्रिंशद्विधा षट्त्रिंशद्भेदा ।।७२।। तानेवाह -
का विभक्तिनाम पुढवी अ सक्करा वालुगा य उवले सिला य लोणूसे । अय-तंब-तउव-सीसग-रुप्प-सुवण्णे अ वइरे अ ।।७३।।
षटत्रिंश
मध्ययनम् व्याख्या - पृथिवी शुद्धपृथिवी १शर्करा लगपलशकलरूपा २ वालुका प्रतीता ३ उपलो गण्डशैलादिः ४ शिला च वट्टा दृषत् ५ लवणं ॥ समुद्रलवणादि ६ ऊषः क्षारमृत्तिका ७ 'अयस्ता पकसी"सक रूप्य सुवर्णानि प्रतीतानि, वज्रं हीरकः ।।७३।।
हरि आले हिंगुलए, मनो सिला सास गंजण पवा ले । अब्भ पडलब्भवा लुअ, बायरकाए मणिविहाणा ।।७४।।
व्याख्या - हरितालादयः प्रतीताः, सासको धातुविशेषः, अञ्जनं, प्रवालं विद्रुमं, अभ्रपटलमभ्रक, अभ्रवालुका अभ्रपटलमिश्रा वालुका । ॥ बादरकाये बादरपृथ्वीकायेऽमी भेदाः । 'मणिविहाणत्ति' चस्य गम्यत्वान्मणिविधानानि च मणिभेदाः ।।७४ ।। मणिभेदानाह -
गोमे जए अरुअगे, अंके फलिहे अ लोहि अक्खे अ । मर गय-मसार गल्ले, भुअमो अग इंदनीले अ ।।७५।। चंदण गेरु य हंस गब्भ पुलए "सोगंधिए अ बोधब्वे । चंद"प्पभवेरु"लिए, "जलकंते "सूरकंते अ ।।७६।।
व्याख्या - इह च पृथिव्यादयश्चतुर्दश हरितालादयोऽष्टौ गोमेदकादयश्च क्वचित्कथञ्चित्कस्यचिदन्तर्भावाञ्चतुर्दशेत्यमी मीलिताः Lषत्रिंशद्धवन्तीति सूत्रनवकार्थः ।। ७६।। प्रकृतोपसंहारपूर्वकं सूक्ष्मपृथ्वीकायिकानाह -
११८९
Ill
IS! ||Gll Isl likell
Inn Education inimation
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 1229 1230 1231 1232 1233 1234 1235 1236 1237 1238 1239 1240 1241 1242 1243 1244 1245 1246 1247 1248 1249 1250 1251 1252 1253 1254 1255 1256 1257 1258 1259 1260 1261 1262 1263 1264 1265 1266 1267 1268 1269 1270 1271 1272 1273 1274