Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay,
Publisher: Sanmarg Prakashan
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उत्तराध्ययन
सूत्रम् १९६९
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भिक्खिअव्वं न केअव्वं, भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा । कयविक्कओ महादोसो, भिक्खावित्ती सुहावहा ।। १५ ।। || अनगारमार्ग
व्याख्या - भिक्षितव्यं याचितव्यं तथाविधवस्त्विति गम्यते, न क्रेतव्यं उपलक्षणत्वाञ्च नापि विक्रेतव्यं भिक्षुणा भिक्षावृत्तिना, II Hel अत्रैवादरख्यापनार्थमाह-क्रयश्च विक्रयश्च क्रयविक्रयं महादोषं, लिङ्गव्यत्ययः सूत्रत्वात्, भिक्षावृत्तिः सुखावहा ।।१५।। भिक्षितव्यमित्युक्तं तबैककुलेऽपि स्यादत आह -
मध्ययनम् all समुआणं उंछमेसिज्जा, जहासुत्तमणिंदिअं । लाभालाभंमि संतुटे, पिंडवायं चरे मुणी ।।१६।।
व्याख्या - समुदानं भक्ष्यं तच उञ्छमिव उज्छ अन्यान्यगृहेभ्यः स्तोकस्तोकमीलनात् एषयेद्वेषयेत् यथासूत्रं आगमार्थानतिक्रमेण ॥ noon उद्गमोत्पादनैषणाद्यबाधात् इति भावस्तत एवानिन्दितं जात्यादिजुगुप्सितजनसम्बन्धि यन्न भवति, तथा लाभालाभे सन्तुष्टः पिण्डस्य पात: पतनं प्रक्रमात् MS पात्रेऽस्मिन्निति पिण्डपातं चरेदासेवेत मुनिर्वाक्यान्तरविषयत्वाञ्च न पोनरुक्तव्यम् ।। १६ ।। इत्थं पिण्डमवाप्य यथा भुञ्जीत तथाह - & Mal अलोले न रसे गिद्धे, जिब्भादंते अमुच्छिए । न रसवाए |जिज्जा, जवणट्ठाए महामुणी ।।१७।। s
___ व्याख्या - अलोलो न सरसान्ने प्राप्ते लाम्पट्यवान्, न रसे मधुरादौ गृद्धोऽप्राप्तेऽभिकाङ्क्षावान्, कुतश्चैवंविधः ? यतः “जिब्भादंतेत्ति' al S दान्तजिह्वोऽत एवामूर्छितः सन्निधेरकरणेन भोजनकालेऽभिष्वङ्गाभावेन वा । एवंविधश्च न नैव 'रसट्ठाएत्ति' रसो धातुविशेषः स all
चाशेषधातूपलक्षणं ततस्तदुपचयः स्यादिति रसार्थं धातूपचयार्थमित्यर्थः न भुञ्जीत, किमर्थं तह-त्याह-यापना निर्वाहः स चार्थात् संयमस्य तदर्थ ॥ I महामुनिर्भुञ्जीतेतियोगः ।।१७।। तथा -
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