Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Bhavvijay, Matiratnavijay, 
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 1222
________________ ||Gl उत्तराध्ययन- सूत्रम् ||sil el ||७|| ११८० Jell 16 Ioll ||oll Isil Isi फासओ उण्हए जे उ, भइए से उवण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ ।।३९।। 6 जीवाजीव || विभक्तिनाम फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ ।।४०।। Isl in षटत्रिंशफासओ लुक्खए जे उ, भइए से उवण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ ।। ४१।। मध्ययनम् Well परिमंडलसंठाणे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ ।। ४२।। संठाणओ भवे वट्टे, भइए से उवण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ ।।४३।। संठाणओ भवे तंसे, भइए से उवण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ ।।४४।। संठाणओ अचउरंसे, भइए से उवण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ ।। ४५।। जे आययसंठाणे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ ।। ४६।। व्याख्या - इमानि सर्वाण्यपि प्राग्वद्याख्येयानि समुदायार्थस्त्वयमेषां, तथाहि-अत्र द्वौ गन्धौ, पञ्च रसाः, अष्टौ स्पर्शाः, पञ्च संस्थानानि, तेषु ॥ 8 वर्णपञ्चकं विनाऽन्येऽमी मीलिता विंशतिः, एते चैकेन कृष्णवर्णेन लब्धाः, एवं विंशतिभङ्गान् प्रत्येकं पञ्चापि वर्णा लभन्ते, एवं लब्धं शतं १०० । । Mol तथा द्वौ गन्धौ, तो विनाऽन्ये पूर्वोक्ता अष्टादश १८, पञ्चभिर्वर्णर्मीलितास्त्रयोविंशतिः २३, ततो गन्धद्वयेन लब्धाः ४६ । एवं रसपञ्चके l ११८० foll Isil Noil ला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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