Book Title: Udisa me Jain Dharm
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Joravarmal Sampatlal Bakliwal

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Page 9
________________ कटक के चौधुरी बजार के सन्निकट दिगम्बर जैन मंदिर बहुत प्राचीन और विशाल है। चावलीयागंज से दूरस्थ होने के कारण धर्मशील श्री संपतलाल बाकलीवाल और उनके परिवार के सदस्यों को मंदिर जा कर नित्यप्रतिदिन दर्शन करना संभव नहीं था। इसी असुविधा को दूर करने के लिए आठवें तीर्थकर चन्द्रप्रभ स्वामी के नाम पर श्री चन्द्रप्रभ जिन चैत्यालय की स्थापना चावलिया गंज, नया बाजार, कटक में स्थित श्री संपतलाल वाकलीवाल के निजी आवास में १२ मई १९८० के शुभ मुहूर्त में हुई थी। इसकी स्थापना की प्रेरणा स्रोत पूजनीया अर्यिका श्री १०५ इन्दमती माता जी के संघस्थ विदुषी आर्यिका श्री १०५ सुपार्श्वमती माता जी का मंगल आशीर्वाद प्राप्त है। उक्त संघ की आर्यिका थी १०५ विद्यामती माता जी और १०५ थी आर्यिका सुप्रभा माता जी का भी उत्साह वर्धक शुभाशीर्वाद प्राप्त था। उक्त चैत्यालय में आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ स्वामी मूल नायक हैं। इन के अतिरिक्त सोलह वें तीर्थंकर शांतिनाथ और चौवीस वें तीर्थंकर महावीर की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित हैं। शासन देवी पद्मावती और क्षेत्रपाल कुल पांच मूर्तियों से युक्त चैत्यालय भव्य और शांतिदायक है। इसी चैत्यालय से प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा हैं। अत: इस को मै सतत् नमन करता हूँ। इसकी प्रकाशन राशि श्री संपतलाल बाकलीवाल द्वारा उपलब्ध कराई गई है ; इसलिए इन के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूँ। इस ग्रन्थ का इन्ट्रोडक्सन प्रफेसर साधुचरण पंडा, कुलपति, उत्कल संस्कृति विश्व विद्यालय, भुवनेश्वर ने लिख कर मेरा बड़ा उपकार किया है। अत: मै उन के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। श्री पवन कुमार और संतोष कुमार जैन का भी समय समय पर मुझे सहयोग प्राप्त होता रहा। अत: वे भी धन्यवादाह हैं। डॉ. श्रीमती जैनमती जैन ने इस कार्य को पूरा करने में पूर्ण सहयोग दिया। अत: उन्हें मेरा सतत् शुभाशीष। शीघ्र स्वच्छ प्रकाशन में सहयोगी अंकिता ग्रफिस, भुवनेश्वर के प्रोप्राइटर श्री सरोज महापात्र को मै हार्दिक धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता हूँ। सुधीजनों के सुझाओं का स्वागत है। पाठकों का संतुष्ट होना ही मेरे इस परिश्रम की सफलता है। विनित वी.नि.सं.२५३२ लेखक श्रुत पंचमी VIII Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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