Book Title: Tulsi Prajna 1991 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ निष्कर्ष रूप में "लोक" शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि लोक वह है जो ग्राम या नगर कहीं भी रहता हो, साक्षर हो या निरक्षर, किसी भी जाति या धर्म का हो, परिस्थितियों एवं अभावों के कारण समाज का एक ऐसा वर्ग जो सम्पत्ति, सम्मान एवं शक्ति की दृष्टि से सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं धार्मिक जीवन में तथाकथित उच्च, सभ्य, सुशिक्षित एवं सम्पन्न वर्ग की दृष्टि में उपेक्षित है एवं निम्न है या उसके शोषण का शिकार है, फिर भी जिसके जीवन में उस देश की पारम्परिक पुनीत संस्कृति का जीवन्त रूप झलकता है । संदर्भ : १. वाचस्पत्यम् (बृहत्संस्कृताभिधानम् ) षष्ठो भागः पृ. ४८३३ । २. हलायुधकोश ( अभिधानरत्नमाला) पृ. ५८१ । ३. हिन्दी - साहित्य कोश, प्रथम भाग, पृ. ७४७, लोक के भुवन, दिश्व, स्वर्ग, पाताल, समाज, प्रजा, जनता-समूह, मानव-जाति, यश, दिशा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, पापी आदि अर्थ किये जाते हैं । ४. ऋग्वेद- १०१८५१२४, २८, ८६।२१, १०२४५६, १०।१३३ । १ । ५. ऋग्वेद – ७।३३।५, ७१६०१६, ७१८४१२, १०/१६/४, २०१८५।२० । ६. वही. १०।१०४।१०, २५, ७. ऋग्वेद. ७२६६१४, ६ ११३७, १०६०१४, २०११८०३ । ८. वैदिक इण्डेक्स, भाग दो, पृ. २५६ । ६. अतल, वितल. सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल ये सात पाताल हैं । १०. पौराणिककोश, पृ. ४५३, ११. बृहदारण्यकोपनिषद्. १।५।१६, ३।६।१ । हरिवंश पुराण, ६३८८, ११७१, ४२४, ५६ ७४ । १३. बृहद् ११४११५, ११५/४, २।१।१२ । १३. बृहद् - "न वा अरे लोकानां कामाय लोकाः प्रिया । भवन्त्यात्मनस्तु कामाय लोका: प्रिया भवन्ति । " २|४|५| हरिवंश - "लोकानां भूतये भूतिमात्मीयां सकलां दधत् । सर्वलोकातिवार्तित्या भासास्थानमाधितिष्ठतः ।। ५७।१६७ ॥ - लोकोपालम्भतो भीत्या मयकाऽयं निकाकृतः । ३३।२० । १६, ५२।७५, २४/४४, १६।१२१, ६८७ । १४. लोकानां तु विवृद्धयर्थं मुखबाहूरुपादतः । मनु १।३१ । तद्विसृष्टः स पुरुषो लोके ब्रह्म ेति कीर्त्यते ॥ मनु १११ । त एवहि त्रयो लोकास्त एव त्रया आश्रमाः । मनु, २।२३० । मनु, १६, १८४, २१५. २५७, २।११०, २।१६३, २१२१४, २१२३२, २।२३३ । ये लोका दानशीलतां स तानाप्नोति पुष्कलान् ॥ याज्ञ ० खण्ड १७, अंक ३ (अक्टूबर - दिसम्बर, ६१ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only आचाराध्याय १२/३ | ११५ www.jainelibrary.org

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