Book Title: Tulsi Prajna 1991 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 69
________________ माध्यम से कुंठा, विकृति और संत्रास का हौवा नहीं खड़ा करते; अजनबीयत की दुनिया में ले तो जाते हैं पर भटकाते नहीं। स्वस्थ एवं विरेचक यथार्थ चित्रण की दृष्टि से मुनि प्रशांत कुमार एक श्रेष्ठ कथाकार सिद्ध होते हैं । आशा है, उनकी प्रशान्त दृष्टि एवं प्रभावी सृष्टि से हिन्दी-कथासाहित्य संपन्न होता रहेगा। -डॉ० रामप्रसाद मिश्र १४, सहयोग अपार्टमेंट्स मयूरविहार-१, दिल्ली-११००६१ ३. अब किसकी बारी है। लेखक विमल मित्र । अनुवादक योगेन्द्र चौधरी । मूल्य-४५/- रूपए । संस्करण-१९८९ । प्रकाशक-राजपाल एण्ड सन्स, कश्मीरीगेट, दिल्ली। विमल दा की यह कृति पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री तुलसी के चरणों में भेंट हुई है और इसके प्राक्कथन में विमल मित्र ने युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ को संबोधन कर लिखा है-'आप मेरे लिए लिखते हैं, मैं जनता के लिए लिखता हूं।' दरअसल इसका सम्पूर्ण प्राक्कथन २४ अक्टूबर सन् १९८७ को विमल मित्र द्वारा युवाचार्यश्री के दर्शन करने पर हुए कथोपकथन की हूबहू नकल है। जो प्रेक्षाध्यान, लाडनूं के जुलाई १९८८ अंक में छप चुका है। अब किसकी बारी है ? प्रश्न को विमल मित्र ने केवल शीर्षक रूप में लिखा है। पुस्तक की मूल कथा में कहीं यह प्रश्न नहीं है किन्तु हसीना बेगम और दर्शनसिंह की लड़की मिसेज सुलताना के स्वकथ्य में यह प्रश्न बार-बार उभरता है। विमल दा को यह महारथ हासिल है कि वे पुरानी और घिसीपिटी घटना को प्राणवंत कर देते हैं शत शत श्रद्धांजली ! दो दिसम्बर १९९१ को शाम साढे छह बजे कलकत्ते में विमलदा की मृत्यु हो गई। वे २२ मार्च १९१२ में जन्में थे। उनके उपन्यास "खरीदी कौड़ियों के मोल" का नायक दीपांकर भी सन् १९१२ में ही जन्मा था। उनसे १०० वर्ष पहले चार्ल्स डिकन्स जन्मा जिसके उपन्यास-"टेल ऑफ द टू सिटीज" से उन्होंने उपन्यास लिखने की प्रेरणा पाई। स्मरणीय है कि विमलदा के अन्तिम दर्शन को नेशनल लाइब्रेरी से केवडातला घाट तक दोनों ओर खड़े हजारों पाठकों ने, जिनमें छात्र-छात्राएं अधिक थों, उन्हें अपनी मूक श्रद्धाजंलियां समर्पित की। -संपादक और पाठक बरबस उसमें रम जाता है । इस कृति में विमलदा ने भारत-पाक विभाजन का दोष सीधे लार्ड माउन्टबेटन, लेडी माउन्टबेटन और पं. जवाहरलाल तथा सरदार पटेल के मत्ये मंड दिया है। श्री खुशवंतसिंह की पुस्तक-'ट्रेन टु पाकिस्तान' में इसी कथानक की भयावह प्रस्तुति है। 'ग्रोव प्रेस अवार्ड' से सम्मानित खण्ड १७, अंक ३ (अक्टूबर-दिसम्बर, ११) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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