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बला यानी समस्या संकट है। न बला. 'सो अबला। समस्या-शून्य-समाधान । अबला के अभाव में सबल पुरुष भी निर्बल बनता है। समस्त संसार है , फिर समस्या-समूह सिद्ध होता है।
इसलिए स्त्रियों का यह 'अबला' नाम सार्थक है। स्त्री-'स्' यानी सम-शील-संयम
'त्री' यानी तीन अर्थ है : धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थ में पुरुष को कुशल संयत बनाती है
सो 'स्त्री' कहलाती है। सुता---'सुता' शब्द स्वयं सुना रहा है
'सु' यानी सुहावनी अच्छाइयां
और/'ता' प्रत्यय वह भाव-धर्म, सार के अर्थ में आता है यानी/सुख-सुविधाओं का स्रोत-सो
'सुता' कहलाता है। दुहिता-उभय-कुल मंगल-वधिनी, उभय-लोक-सुख सजिनी
स्व-पर-हित सम्पादिका/कहीं रहकर किसी तरह भी हित का दोहन करती रहती सो "दुहिता" कहलाती है। इसी प्रकार अन्य वाक्य अथवा उक्तियां भी सबल सार्थक ढंग से व्यक्त हुई
अति के बिना/इति से साक्षात्कार संभव नहीं, और/इति के बिना, अथ का दर्शन असंभव ।
'भी' के आस पास/बढ़ती-सी भीड़ लगती अवश्य किन्तु भीड़ नहीं/'भी' लोक तंत्र की रीढ़ है ।
धरती की प्रतिष्ठा बनी रहे/और हम सबकी/धरती में निष्ठा घनी रहे/बस ।
योग के काल में भोग का होना/रोग का कारण है, और भोग के काल में रोग का होना/शोक का कारण है ।
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संहार की बात मत करो/संघर्ष करते जाओ। हार की बात मत करो उत्कर्ष करते जाओ।
खण्ड १७, अंक ३ (अक्टूबर-दिसम्बर, ६१)
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