Book Title: Tulsi Prajna 1991 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 72
________________ कथाओं का लघु कलेवर गहनता धारण कर तीव्र प्रहारक रूप में सामने आता है और जहां तहां मानवतावादी रूप भी धारण कर लेता है। निश्चय ही यह कथा साहित्य की अमूल्य निधि बनेगी। -लाखनसिंह शर्मा ६. "मूल्य मुस्कान का" । कवि-मुनिश्री लोकप्रकाश 'लोकेश' । प्रकाशकआदर्श साहित्य संघ, चूरू । पृ० १२५ । मूल्य १५/- रुपये। प्रस्तुत कृति "मूल्य मुस्कान का" भाव-प्रधान कविताओं का संग्रह है । संग्रह में कवि की वैयक्तिक अनुभूतियों की झलक है। यों भी कविता कवि की आत्मा का प्रस्वेद तथा उसके मनोभावों की शब्द-बद्ध अभिव्यक्ति ही मानी जाती है । लगता है एक गतिशील एवं स्वस्थ सामाजिक दृष्टि का संकलित आवेश ही इन कविताओं के मध्य विकसित हुआ है । फिर भी कवि 'लोकेश' की कविताओं का मुख्य रंग व्यंग्य है। कवि ने रूढ़ परम्पराओं, मिथ्या मान्यताओं, विषम व कृत्रिम व्यवहारों तथा अनैतिक आचरण को प्रस्तुत कर उन पर सीधा आघात किया है। पर यह आघात असंयत और अमर्यादित नहीं है। मानवीय दुर्बलताओं के प्रति कवि की दृष्टि सहानुभूति पूर्ण है। मनोरंजन या परिहास व्यंग्य का सहचर है। "यह हो सकता है"- कविता में पितामह और पौत्र का संवाद इसका सुन्दर उदाहरण है। इसी तरह भाषा सर्वत्र सहज व सरल है। उपमाओं में परम्परागत बासीपन नहीं है, फलतः उपमाओं में सार्थकता का समावेश हुआ है । "बूढ़े बरगद के साथ अधखिली कली को ब्याह देना" इसका सुन्दर उदाहरण है। - कविताओं में दर्शन का स्थान वहीं तक है जहां तक उसका यथार्थ जीवन से संबंध है। सुख-दुःख के परिभाषांकन में कवि ने चेतना के तलघर में, आत्मा के अविराम अनहदनाद को ही सुख माना है। “चाह" कविता में दुःख के दर्शन की सरल अभिव्यक्ति है अप्राप्त का आकर्षण/प्राप्त का असंतोष कौन नहीं है/दुःखी दुनिया में ? जीवन का सत्य कवि ने सहज स्वाभाविक ढंग से उजागर कर दिया है । "चिन्ता" नामक कविता इसका अनूठा उदाहरण है न धुआं उठा/न चिनगारियां छिटकी/न कहीं राख बिखरी/ फिर भी मनुष्य जल गया/चिन्ता-चिता में। कई स्थलों पर कविता गद्य-पद्य की सीमा तिरोहित करने वाले रेखाचित्रों का सा रूप ले लेती है, पर कवि की मंशा कहीं भी तिरोहित नहीं होती। वह जन जीवन की समस्याओं की गहराई में प्रवेश करने की चेष्टा करता है। उसकी पीड़ा है कि धरती से ईमानदारी और इन्सानियत लुप्त हो रही है और मनुष्य टूट रहा है । परन्तु इस पीड़ा में भी आशा और आस्था के बीज अन्तनिहित हैं। कवि का उद्देश्य पाठक के चिन्तन की दिशा को मोड़ना है और उस दृष्टि से यह संग्रह निश्च य ही सार्थक सिद्ध होगा। क्योंकि इन कविताओं में कवि ने समाजगत दुर्नीतियों पर चोट के रूप में ही अपनी भावना की मुस्कान का मूल्य चुकाने का प्रयास किया है। -सीताराम दाधीच १७२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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