Book Title: Tulsi Prajna 1991 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 117
________________ 5. 'Thank you very much for sending me the July-September. 91 issue of Tulsi prajna. I have gone through the English section of articles included in it. I am delighted to read such valuable and thought-provoking writing by men of eminence'. 'I am learning Hindi now, gradually I may be able to read and understand Hindi articles in it. The Journal, I am convinced, is useful to all those interested in knowing the ancient glory of Indian thought, Let this Journal flourish for long and serve the cause of humanity, under the aiges of Acharya shree Tulsi. (Prof) H. R. Dase Gowda; ___Bangalore. ६. 'पहली बार 'तुलसी प्रज्ञा' देखने को मिला । इतिहास, दर्शन एवं अध्यात्म ज्ञान की कुंजी-सा यह मालूम हुआ । मेरा काफी ज्ञानवर्धन हुआ। आपके इस अंक से ज्ञात हुआ कि गत अंक में भगवान् महावीर के काल के बारे में कोई शोधपूर्ण लेख आपने प्रकाशित किया था। हमने सितम्बर ६१ के 'अहिंसा विहंगम' में भगवान् कृष्ण की ५१५६ वी जन्म तिथि पर जन्माष्टमी अभिनंदन किया था। विदेशी एवं विशेषकर ब्रिटिश साहित्यकारों एवं इतिहासविदों ने अपनी हीन भावना को छिपाने हेतु भारतीय संस्कृति के इन स्तम्भों के जीवनकाल को ईसा के समय के बाद बताना चाहा था पर यह संभव नहीं होने से ईसा के कुछ सौ वर्ष पूर्व ही बताने का दुराग्रह करते रहे हैं एवं हमारे भारतीय मानसिक गुलाम इस पर अन्वेषण एवं शोध करने की बजाय उनकी हां में हां मिलाने जैसे सरल रास्ते पर चलते रहे हैं । आप के इस अनुसंधान-त्रैमासिकी हेतु मेरा साधुवाद एवं धन्यवाद । भंडारी मदनराज, महासचिव, राष्ट्रीय अहिंसा प्रतिष्ठान, जोधपुर ७. 'आपके कुशल संपादकत्व में 'तुलसी प्रज्ञा' अभी सुन्दर निकल रहा है। इस अंक के लेख शोर्ट हैं लेकिन बहोत रोचक और ज्ञानप्रद हैं । ऐसा ही होना चाहिए। क्योंकि यह एक रीसर्च जर्नल होते हुए भी हम जैसों के लिए यह पठनीय पत्रिका है। साथ में आप जो बुक रीव्यू देते हैं वह तो बहोत अच्छा है।' एस० के० शाह, सांगली ८. 'तुलसी प्रज्ञा' का अंक देखने को मिला। पत्रिका का स्वरूप आपके संपादकत्व में और भी निखर गया है । आपको हार्दिक बधाई ।' (श्री) हजारीमल बांठिया, पंचाल शोध संस्थान, कानपुर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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