Book Title: Tulsi Prajna 1991 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 116
________________ पत्राक्ष: १. 'मेरा तेरापन्थ से काफी सम्बन्ध रहा है। मेरा गांव गंगापुर (भीलवाड़ा) है। मेरे मोहल्ले में ही आचार्य श्री तुलसीजी को आचार्य पद दिया गया था। मैं उस समय ५ वर्ष का था। मैंने सारी घटना देखी हैं। इसके बाद भी आचार्यश्री के कई बार गंगापुर, राजनगर, जयपुर आदि स्थानों पर दर्शन किए हैं।' ___ 'पत्रिका में आपके आ जाने से इसका कलेवर भी अच्छा हुआ है । आशा है कि पत्रिका आगे और अधिक उन्तति करेगी।' श्री रामवल्लम सोमानी, जयपुर २. 'तुलसी-प्रज्ञा का जुलाई-सितम्बर अंक मिला। संपादकीय बहुत अच्छा लगा। खारवेल के समूचे लेख का सम्पादित पाठ प्रकाशित करें तो और भी अच्छा होगा । इस लेख को लेकर मौर्यसंवत्, नंदसंवत्, पुष्पमित्र और खारवेल की समकालीनता, आन्ध्रवंश के राजा शातकर्णी से खारखेल की समकालीनता आदि तरह-तरह की कल्पनाएं की गयी हैं । सही पाठ से बहुत-सी बातें स्वतः निर्णीत हो जाएंगी।' ___ 'मेरी समझ में 'बहसतिमित' पुष्यमित्र नहीं है । कैम्ब्रिज हिस्ट्री का अन्धानुकरण करके बहुत से इतिहासकार महावीर को बुद्ध का जूनियर कन्टेम्प्रेरी बताते हैं, उनका निर्वाण भी बुद्ध के बाद कहते हैं । यह सब उनकी नासमझी है । इस संबंध में आपने जो तथ्य रखे हैं, वे सर्वथा मान्य हैं।' श्री उपेन्द्रनाथ राय, मटेली (पं. बंगाल) ३. 'मैं भक्तवर ईसरदासजी कृत 'हरि रस' को पूर्ण प्रामाणिक पाठ सहित सम्पादित करने में लगा हूं।......जैन विश्व भारती जैसी अन्तर-राष्ट्रीय ख्याति की संस्था में आप जैसे विद्वान् का होना मणिकाञ्चन योग है । आज हमारे प्राचीन सत्साहित्य को छापने वाले कोई नहीं दिखाई देते, जिस साहित्य पर हमें गर्व है और विदेशियों तक ने जिसे खूब सराहा है । 'तुलसी प्रज्ञा' का अंक अत्यन्त महत्त्व पूर्ण सामग्री से भरपूर है । पूरा पढ़कर सम्मति भेजूंगा । आपको सुष्ठ सम्पादन हेतु बधाई ।' डॉ. शक्तिवान कविया, जोधपुर ४. 'तुलसी-प्रज्ञा' का नया अंक प्राप्त हुआ। इसके लिए हार्दिक धन्यवाद । स्पष्ट ही आपके सम्पादकत्व में इस अनुसंधान-पत्रिका में विशेष निखार आया है, जो सराहनीय है।' 'प्रस्तुत अंक में प्रकाशित सामग्री पठनीय है और मैंने इसे बड़े चाव से पढ़ा है। श्री विश्वनाथ मिश्र, डॉ० के० आर० चन्द्र तथा डॉ० प्रेमसुमन जैन के लेख मुझे विशेष पसंद आए हैं।' ग मनोहर शर्मा, अध्यक्ष हिन्दी विश्व भारती, बीकानेर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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